Saturday, March 14, 2009

आसमां का ख्वाब रखो

"रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो

तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो

खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी

तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो

मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें

महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो

अक्लमंदों में रहो तो अक्लमंदों की तरह

और नादानों में रहना हो रहो नादान से

वो जो कल था और अपना भी नहीं था दोस्तों

आज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से "

4 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह..बहुत खूब..सुन्दर रचना. ब्लौग-जगत में आपका स्वागत है.

Asha Joglekar said...

वो जो कल था और अपना भी नहीं था दोस्तों

आज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से "

बहुत सुंदर

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

aapne to kamal se bhee adhik kamal kar diya. narayan narayan