Sunday, May 9, 2010

जागो पुलिस वालो, यह समय है जागने का

अभी भी समय है पुलिसवालों को नींद से जाग जाना चाहिए। इस कठोर टिप्पणी के साथ दिल्ली की एक निचली अदालत ने बच्चे के अपहरण और फिरौती के मामले में पुलिस के जांच के तरीके पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि ऐसे गंभीर मामलों की जांच डीसीपी स्तर के अधिकारी के मार्गदर्शन में की जानी चाहिए। जिससे आपराधिक मामलों में इंसाफ हो सके। अदालत ने अपने फैसले की एक प्रति उत्तर पूर्वी जिला के डीसीपी को भी भिजवाई है।
यह टिप्पणी कड़कड़डूमा कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निशा सक्सेना ने अपहरण व फिरौती के एक मुकदमे में पांच आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी करते हुए की। अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले को हलके में लेते हुए लापरवाही से जांच की। केस के तथ्यों को देखने से लगता है कि पुलिस जांच रिपोर्ट पूरी तरह से गलत, तथ्यहीन और लापरवाह है। पुलिस की इस ढिलाई से आरोपियों का अपराध साबित नहीं किया जा सका। ऐसी लापरवाही की उम्मीद पुलिस से नहीं की जा सकती।
पेश मामले में खजूरी खास थाने में 2 मार्च 2007 को सर्वेश ने अपने ढाई साल के बेटे हिमांशु की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया था। सर्वेश का बेटा घर के बाहर खेलते हुए गायब हो गया था। बाद में सर्वेश को 20 मार्च को फिरौती का एक पत्र मिला, जिसमें उसके बेटे को छोड़ने की एवज में 30 लाख रुपये मांगे गए थे। सर्वेश ने इसकी सूचना पुलिस को दी। अपहर्ताओं ने 1, 3 और 5 अप्रैल को सर्वेश के मोबाइल पर भी फोन किया। 7 अप्रैल को इस मामले की जांच सबइंस्पेक्टर सतेंद्र तोमर को सौंपी गई। पुलिस ने 17 अप्रैल को अलीगंज के देहलिया पूठ गांव में अमर सिंह के घर पर छापा मार कर वहां से दीपू, राकेश, राजकिशोर, महेश और जितेंद्र को गिरफ्तार किया। पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से हिमांशु को भी आजाद कराया। अदालत में सुनवाई के दौरान पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कुल आठ गवाह पेश किए।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निशा सक्सेना ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद पुलिस द्वारा मामले के संबंध में आरोपियों के खिलाफ पेश किए गए सबूतों को नाकाफी पाया।

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