Thursday, September 2, 2010

हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी

हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी  


मैं ना तुझसे कभी हारा, पर मेरी जेब है तुझसे हारी

लड़ता रहता हूँ अपने आप से, इस ज़माने से
मगर यहाँ पर जीना है मौत से भारी!

हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी  


खटता  रहता हु सारा सारा दिन काम में
मगर रात में भूख मिटती नहीं हमारी
मैं ना तुझसे कभी हारा, पर मेरी जेब है तुझसे हारी
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी  



१०० के पेट्रोल में पहले जाता था एक हफ्ता, मगर अब
पूरा एक दिन भी नहीं चलती अपनी गाडी
  खाना महंगा मगर यहाँ सस्ती है गाडी,
शायद इसी लिये अपने देश में बढ़ रहे हैं भिखारी
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी  

5 comments:

kumar said...

hmmm bahut gehraai hai, iss kavita me

अविनाश वाचस्पति said...

गाड़ी में सीएनजी लगवा लो
फिर से सप्‍ताह भर दौड़ने लगेगी।
महंगाई है
तो इसका इलाज भी है।

Pawan Kumar Sharma said...

hahaha, avinash ji car me to cng lagwa rakhi hai, magar bike ka kya karu

Rahul Singh said...

महंगाई से प्रेरित होकर हमारे मुहल्‍ले के कई लोगों ने अपनी कमाई बढ़ा ली और महंगाई को मुंह चिढ़ा रहे हैं, आपके लिए भी शुभकामनाएं.

Pawan Kumar Sharma said...

hamne bhi mahangai se haar nahin maani hai, jugaad to hamne bhi kar hi liya hai rahul ji