Thursday, June 5, 2014
सभी धर्मो के लिए एक समान कानून संभव नहीं
पवन कुमार, नई दिल्ली-
भारत में सभी धर्मो के लोग रहते हैं। सभी धर्मो के अपने अलग-अलग नियम, नीतियां एवं मान्यताएं हैं। ऐसे में यह संभव नहीं हो सकता कि सभी धर्मो के लिए एकसमान कानून बनाया जाए। यह टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी व न्यायमूर्ति आरएस एंडलॉ की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए की है। खंडपीठ ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें केंद्र सरकार को सभी धर्मो पर लागू होने वाला एकसमान कानून बनाने का निर्देश देने की माग की गई थी।
खंडपीठ ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के कई अन्य निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि अदालतें संसद के काम में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। न ही अदालतें विधायिका को यह निर्देश दे सकती हैं कि वह इस तरह का कोई कानून बनाए। इतना ही नहीं हमारे देश में संविधान में सभी धर्मो के लोगों को अपना-अपना धर्म व जाति मानने की अनुमति दी गई है।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि आज के समय में एक ऐसा कानून बनाने की जरूरत है, जो सभी देशवासियों पर एकसमान से लागू हो परतु ऐसा करना एकदम से संभव नहीं है। कानून में बदलाव की प्रक्रिया धीमी है, लेकिन फिर भी जहा भी जरूरत होती है, वहा पर कानून में बदलाव किए जा रहे है। ऐसे में यह सोचना गलत होगा कि एकदम से ऐसा कानून बना दिया जाए जो सब पर समान रूप से लागू हो। इसलिए इन तमाम फैसलों को ध्यान में रखते हुए इस जनहित याचिका को खारिज किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि मूलचंद कुचेरिया नामक व्यक्ति ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 1995 में सरला मुदगिल बनाम केंद्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला देते हुए एकसमान रूप से सभी पर लागू होने वाला कानून बनाने का सुझाव दिया था। इसलिए उन सुझावों को एक निश्चित समय में लागू किया जाए। साथ ही सभी धर्म गुरुओं व धर्म विशेषज्ञों की एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई जाए, जो इस संबंध में बनाए गए दिशा-निर्देशों को लागू करवा सकें।
ज्ञात हो कि सरला मुदगिल नामक मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हिदू पति द्वारा इस्लाम कबूल करने के बाद दूसरा विवाह करने का मामला उठाया गया था। जो भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत मान्य नहीं है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment