Sunday, January 10, 2010
कैंची से दोस्ती करेंगे आईटीआई के छात्र
Saturday, January 2, 2010
"कब मनाएं नया साल"
Sunday, December 6, 2009
पत्नी के प्यार से अजिज पति ने मांगा तलाक
सुनने में भले ही विचित्र लगे, लेकिन है सत्य कि पति ने पत्नी के बेइंतहा प्यार से परेशान होकर तलाक मांगा है। उसने कड़कड़डूमा कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की है। अधिवक्ता नितिन कुमार ने बताया कि शाहदरा के युवक रमन (काल्पनिक नाम) की शादी नांगलोई निवासी सुमन (काल्पनिक नाम) से 7 नवंबर, 2007 को हुई थी। उसका कहना है कि पत्नी विवाह से पूर्व ही किसी दिमागी बीमारी से पीडि़त थी। यह बात ससुराल वालों ने उससे छिपाई। विवाह के एक साल तक तो सब ठीक रहा, मगर जनवरी, 2009 से उसके वैवाहिक जीवन में भूचाल आ गया। पत्नी सुमन ने उसकी आवश्यकता से अधिक चिंता करने लगी। शुरुआत में उसने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। सुमन की दिमागी हालत खराब होती चली गई। अगर, वह घर पर होता है तो उसकी पत्नी एक पल भी उसे आंखों से ओझल नहीं होने देती। कोई उससे बातचीत करता है तो सुमन उसे यह कहकर घर से भगा देती है कि छुट्टी के दिन पति का दिन केवल उसका है। घर से निकलने के बाद उसे दर्जनों बार फोन करके उसे पूछती है कि वह ठीक तो है। इसके चलते घर के फोन का बिल 10 हजार के करीब आने लगा है। वह फोन स्वीच आफ कर लेता है तो पत्नी हालचाल जानने के लिए उसके आफिस पहंुच जाती है। ऐसा उसके साथ कई बार हो चुका है। दोस्तों एवं रिश्तेदारों में वह हंसी का पात्र बनता जा रहा है। वह न तो घर में चैन से रह सकता है और न ही बाहर। उसने पत्नी को इहबास अस्पताल में मनोचिकित्सक को दिखाया और वहां पर उसका उपचार भी चल रहा है। वह गंभीर मानसिक रोग से पीडि़त है, जोकि किसी को भी बाल अवस्था में में हो सकता है और सही इलाज न होने पर जीवन भर उसका असर रहता है। पत्नी का आवश्यकता से अधिक प्यार उसकी बर्दाश्त के बाहर है। लिहाजा उसे तलाक दिलाया जाए...
पांच साल की बच्ची के खिलाफ वारंट
अदालत में पेश न होने पर लोगों के खिलाफ वारंट जारी करना अदालत की सामान्य प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया आमतौर पर अदालती आदेशों को न मानने वालों के खिलाफ अमल में लाई जाती है। मगर, कड़कड़डूमा कोर्ट ने गवाही के लिए पेश न होने पर पांच साल की बच्ची के खिलाफ भी जमानती वारंट जारी कर दिया है। किसी पांच साल के बच्चे के खिलाफ जमानती वारंट जारी होने का राजधानी में यह पहला मामला है।
यह मामला कड़कड़डूमा कोर्ट स्थित मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट शिवाली शर्मा की अदालत का है। अदालत ने दुष्कर्म के मामले में पीड़िता पांच साल की बच्ची के खिलाफ पांच हजार रुपये के जमानती वारंट जारी किए हैं और अदालती निर्देश जारी किया गया है कि वह 10 दिसंबर तक अदालत के समक्ष पेश हो। अदालत द्वारा जारी किए गए इस सम्मन ने न्यू उस्मानपुर थाना के कर्मचारियों को परेशानी में डाल दिया है।
खिड़की ने किया जीना दुश्वार, कोर्ट से गुहार
जाफराबाद इलाके में रहने वाले इमरान (काल्पनिक नाम) ने पड़ोसी शाहिद (काल्पनिक नाम) के मकान की खिड़की बंद कराने के लिए सिविल जज की अदालत में याचिका दायर की है। याचिका में इमरान का कहना है कि वह जाफराबाद स्थित मकान में प्रथम तल पर किराये पर रहता है। उसके कमरे के आगे बालकनी है। उसकी शादी को तीन माह हुए हैं। सामने बने मकान में रहने वाले युवक शाहिद ने कमरे की दीवार तोड़ कर उनकी तरफ खिड़की निकाल ली। वहां से शाहिद उसकी पत्नी को गलत इशारे करता है। उसने कई बार शाहिद को धमकाया, लेकिन वह हरकतों से बाज नहीं आया। जब भी वह बालकनी में सिगरेट पीने के लिए खड़ा होता है तो शाहिद उस पर पानी गिरा देता है। उसने कई बार शाहिद के खिलाफ पुलिस को शिकायत की, लेकिन उसने कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस ने कहा कि शाहिद ने खिड़की बिना नक्शा पास कराए मकान में अवैध रूप से बनाई है। वह इसकी नगर निगम को शिकायत कर उसकी खिड़की बंद करा सकता है। उसने मामले की शिकायत निगम अधिकारियों को भी की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। निगम अधिकारियों के चक्कर काटने पर भी उसे लाभ न पहुंचा तो उसे मजबूरन पड़ोसी की खिड़की बंद कराने के लिए अदालत की शरण लेनी पड़ी।
Tuesday, December 1, 2009
काँच की बरनी और दो कप चाय
कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के
चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो
कप चाय " हमें याद आती है ।
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा
कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और
उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें
एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या
बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे -
छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी
सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने
पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब
प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना
शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी
नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी
पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा
.. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में
डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे
, मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस
की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो
गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे
पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों
के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये
तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो ,
सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल
फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले
करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब
तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह
नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले
.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे ,
लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
Tuesday, October 20, 2009
रिवाज
दरवाजे पर दो कच्चे बांस, कफन और धूप-दीप पडा देखकर पडोसी समझ गये यहां कोई मरा है। लेकिन अंदर से कोई रोने-गाने की आवाज नहीं आ रही थी। पडोसियों को आश्चर्य हुआ और जिज्ञासा भी कि मौत के माहौल में भी लोग शांत रह लेते हैं।
एक घंटा के अंदर पडोसी बिना बुलाए मंहगाई की तरह दरवाजे पर जमा होने लगे। उनमें से कुछ लोग बांस काटकर अरथी बनाने में लग गये तो कुछ लोग संभावित मुर्दा के बारे में अनुमान लगाने में। समय गुजरता रहा। दरवाजे पर जमा भीड के शोरगुल ने गृहस्वामी को बाहर निकाल ही दिया।
गृहस्वामी बीस-बाईस साल का युवक था, जिसको देखकर लोगों ने सहज ही अनुमान लगा लिया कि इसको अभी कर्मकांड का अनुभव नहीं है। इसीलिए अरथी उठाने में विलम्ब हो रहा है। भीड ने पूछा- भगवान ने किसको अपने पास बुलाया?
लडका-मेरे बाप को घाट ले जाना है। इतना कह कर लडका अंदर चला गया। भीड में फिर चर्चा होने लगी कि- लडका बहुत उजड्ड है। उसके चेहरे पर दु:ख का कोई लक्षण तक नहीं है। पालतू कुत्ते के मरने पर भी लोग दु:खी होते हैं, इसका तो बाप ही मरा है। लेकिन लडके की बोली तो सुनो।
बाहर पडोसी और अरथी मुर्दा के बाहर आने की प्रतीक्षा करते रहे और समय गुजरता रहा। ऊबकर भीड ने लडके को बाहर बुलाकर पूछा- घाट जाने में अभी और कितनी देर है?
लडका बोला- अभी मैं निर्णय कर रहा हूं कि इसका दाह संस्कार का आरंभ घर से किया जाय कि घाट से। भीड में फिर शोर उठा- ये क्या पागलों वाली बात है? दाह संस्कार तो घाट पर ही होता है।
लडका- शादी-विवाह और कर्म-कांड तो सभी के यहां होता है। लेकिन सभी के यहां के रिवाज एक सा तो नहीं होता है। खैर जब पंचों की मर्जी है कि दाह संस्कार का आरंभ घाट पर ही हो तो ऐसा ही होगा, चला जाये घाट की ओर।
भीड फिर बाहर प्रतीक्षा करने लगी। पांच-दस मिनट में लडके ने अपने बाप को लाकर अरथी पर लिटा दिया। भीड जब अरथी सजाने लगी तो मुर्दा बोला- अभी तो मैं जिंदा हूं। भीड में फिर शोर उठा- बाप अभी जिंदा है और लडका उसे मारने पर तुला है। क्या समय आ गया है? बाप को दो रोटी देना भी लडकों को अखरता है।
लडका- बात रोटी की नहीं है। बात रिवाज की है। आदमी के जीवन-मृत्यु का हिसाब तो ऊपर से ही तय होता है। मेरे यहां का रिवाज है कि दाह संस्कार जीते जी ही किया जाता है। जब मैं पांच-छ: साल का बच्चा था, तो इस आदमी ने मेरी मां का दाह संस्कार जीते जी ही सम्पन्न किया था। भले ही इसे उसके लिए उम्र कैद की सजा हो गयी। समाज या कानून भले ही इसे हत्यारा, पत्नीहन्ता चाहे जो भी कहे, है तो मेरा बाप। मुझे तो अपनी मां की आत्मा की शांति के लिये खानदानी रिवाज निभाना ही होगा।