Monday, September 21, 2009

फर्क

सड़क पर दो कुत्ते आपस में लड़ रहे थे। पास के दुकानदार को नागवार गुजरा। उसने आवाज देकर कुत्तों को भगाना चाहा, पर कुत्ते लड़ते-भौकते ही रहे। तब दुकानदार ने सड़क से एक बड़ा-सा पत्थर उठाया और चला दिया उन कुत्तों पर। इसके पहले कि उन्हे पत्थर लगता वे दोनों रफूचक्कर हो गये। और इत्तफाकन वह पत्थर पड़ोसी की दुकान में जा गिरा और उसका शोकेस का शीशा टूट गया। वह नाराज होकर बुरा भला कहने लगा। पत्थर चलाने वाले दुकानदार ने समझाने की कोशिश की कि उसने जानबूझकर दुकान पर पत्थर नहीं फेंका था। परंतु दूसरा दुकानदार मानने को तैयार ही नहीं था। वह दुकान में हुए नुकसान की भरपाई की मांग कर रहा था। बात यों बढ़ी कि दोनों गाली-गलौज से मारपीट पर उतर आए और फिर ऐसे भिड़े कि एक का सर फट गया। मामला पुलिस तक जा पहुंचा। पुलिस मामला दर्ज कर दोनों को वैन में बिठाकर थाने ले जा रही थी कि रास्ते में लाल सिगनल पर गाड़ी रुकी। पत्थर चलाने वाले ने बाहर झांका देखा, लड़ने वाले वही दोनों कुत्ते एक जगह बैठे उनकी तरफ कातर दृष्टि से देख रहे थे। पत्थर चलाने वाले शख्स को लगा मानो वे दोनों हम पर हंस रहे हों तथा एक दूसरे से कह रहे हों, ''यार, ये तो सचमुच के लड़ गये।''

दूसरे ने कहा, ''हां यार, हमें तो लड़ने की आदत है और हमारी कहावत भी जग जाहिर है परन्तु ये तो हम से भी दो कदम आगे है।''

hansne k kuch bahane


No smoking
insaano ne chod di ab hum shuru kar dete hain, kyun bhai log bolo dum maro dum
Pig on cycle
bhago nahi to log muje swine flu ka karan keh kar maar dalenge

Modification of indian airlines
kuch is tarah udne ka mazaa hi kuch or hai

Funny Monkeys
ise kehte hain bander-baat or loot-paat

About to fall
ab china walon se isse jyada ummid bhi kya ki ja sakti hai


Wednesday, August 19, 2009

विवाह बंधन

माँ दारू देवी की असीम अनुकंपा से पूरे नशे मे टुन्न होकर हुक्के और माल के सनिध्य मैं हमे आज हर्षित होने का अवसर मिला है क्योंकि हमारी बिगड़ी औलाद ..........
चिरंजीव दुली चंद डांगी [NFT]
कूपत्र श्री MARLBORO
तथा
सौ. बीडीकुमारी [DETAINED]
कुपुत्र्ी श्री GOLD FLAKE ...
विवाह बंधन मे बँधने जा रहे है . आप सभी से अनुरोध है की इस पवन अवसर पर पधारे और भरपूर उत्पात मचाकर अपनी उपस्थिति को सार्थक बनाएँ बारात ब्यावरा की "देसी दारू की भट्टी" से निकलकर निकटवर्ती "अँग्रेज़ी शराब की दुकान" की ओर रात 1 बजे के बाद प्रस्थान करेगी ........

चुन्नु-मुन्नू :-- मेरे D.C. भैया की शादी में ज़लूल-ज़लूल आना...........

स्वागतोत्सुक
WILLS, ULTRA MILD ROYAL STAG, GREEN LABLE,
दर्शनाभिलाशी
ROYAL STAG, GREEN LABLE
विनीत
भांग ,कच्ची ,माल ,थिनर

Monday, July 27, 2009

यह कैसी पूजा?

वह किसी कार्यवश अपने मित्र रमन के घर गया था। घर पर रमन मौजूद नहीं था। शायद रमन और उसकी पत्नी किसी कारण बाहर गये हों, यह सोचकर वह रमन की बीमार वृद्ध मां की ओर चला गया जो आंदर खाट पर आंखें मूंदे लेटी हुई थीं।

आहट होने पर वह बोलीं, 'आ गये रमन बेटा।' तो उसने कहा कि, 'मैं रमन नहीं, उसका मित्र विजय हूं'। 'अच्छा हुआ विजय बेटा तुम आ गये।

प्यास के कारण मेरा गला सूखा जा रहा है। जल्दी से एक गिलास पानी लाकर दे दो।' उसने उन्हे पानी दिया। पानी पीने के बाद जब उन्हे कुछ राहत महसूस हुई तब उसने रमन और उसकी पत्नी के बारे में पूछा। इस पर उन्होंने कहा कि वे दोनों पिछले दो घंटे से भी अधिक समय से मंदिर में पूजा-अर्चना करने गये है और अब तक नहीं लौटे है।

उनका इंतजार करते-करते प्यास के कारण गला सूख रहा था और तबियत भी बिगड़ने लगी थी। यह सुनकर विजय को धक्का लगा कि आखिर यह कैसी पूजा है जिसके कारण मां दवा-पानी के अभाव में घर में खाट पर पड़ी दम तोड़ रही है? जबकि वे मंदिर में घंटों से लाइन में लगे, अपनी बारी की प्रतीक्षा करते, भगवान से अपने सफल, सुखद जीवन की याचना कर रहे होंगे। उसका मूड उखड़ गया और वह जिस काम से रमन के घर गया था उसे बिल्कुल भूल ही गया।


ससुराल की इज्जात

विदाई के समय मां ने दीक्षा को समझाया- ''बेटी अपने ससुराल वालों का ख्याल रखना। आज से वही तेरा घर है। हर सुख-दु:ख में उनका साथ देना। उनकी इज्जात ही तेरी इज्जात है।'' मां के बताए संस्कारों और अपने मधुर स्वभाव से दीक्षा ने ससुराल में सभी का दिल जीत लिया।

हंसते-गाते कब एक वर्ष बीत गया पता ही न चला। लेकिन अब उसके ससुराल वाले घोर चिंता में थे। उसकी ननद की शादी होनी थी। रुपयों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। दीक्षा भी बहुत परेशान थी।

इसी बीच वह अपने मायके आई और वहां रखे हुए अपने गहने ले जाने लगी तो उसकी मां ने कहा- ''बेटी दीक्षा, ननद की शादी के लिए तू अपने गहने ले जा रही है यह तू क्या कर रही है? अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी..।''

मां की बात बीच में ही रोकते हुए वह बोली- ''मां यह आप क्या कह रही हो! आप ही ने तो मुझे बताया है कि ससुराल की इज्जात ही मेरी इज्जात है। मां, यह गहने मेरी ननद से बढ़कर नहीं है। अपनी ननद की शादी के लिए मैं हर संभव प्रयत्न करूंगी।'' और वह गहने लेकर ससुराल आ गई।


Tuesday, July 14, 2009

मोबाइल शिष्टाचार सिखाएगी सरकार

अस्पताल में या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अचानक से मोबाइल की घंटी बजने पर सभी को काफी परेशानी होती है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। दरअसल सरकार ने लोगों को मोबाइल पर बात करने संबंधी शिष्टाचार सिखाने का निर्णय लिया है।
इस क्रम में दूरसंचार विभाग ने मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों को निर्देश दिया गया है कि वे सिम या मोबाइल सेट खरीदने वाले उपभोक्ताओं को मोबाइल फोन के उपयोग के बाबत जरूरी शिष्टाचार बताने के लिए लिखित सामग्री उलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करे। लोगों की सुविधा के लिए यह सामग्री अंग्रेजी के साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए है।
दूरसंचार विभाग का कहना है, ग्राहकों को मोबाइल पर बात करने के तौर तरीके सिखाना भी मोबाइल कंपनियों की जिम्मेदारी है।
गौरतलब है कि अनेक विकसित देशों में मोबाइल फोन के इस्तेमाल को लेकर नियम कायदे पहले से ही लागू हैं। अमेरिका, कनाडा और यूरोप के स्कूलों में कक्षा में मोबाइल फोन लाने की इजाजत नहीं है।

* अस्पताल, एयरक्राफ्ट, सिनेमाघर, पूजाघर जैसे सार्वजनिक स्थानों पर मोबाइल फोन को स्विच ऑफ या वाइब्रेशन पर रखें।
* ड्राइविंग करते समय मोबाइल पर बात न करे।
* किसी की जानकारी के बिना मोबाइल से उसकी फोटो न खीचें।
* मोबाइल की रिंगटोन बहुत तेज नहीं होनी चाहिए।

Monday, July 13, 2009

खुशी

सुखबीर को अपने इकलौते बेटे अमन से बड़ा लगाव था। यों तो स्कूल की वैन-सर्विस थी, लेकिन सुबह उसे स्कूल छोड़ने व दोपहर छुट्टी के समय उसे घर लाने के लिए, वह स्वयं स्कूल जाता था। वह इसी में खुश और संतुष्ट था। आज भी तपती दोपहरी में वह स्कूटर पर उसे लेने गया। लू चल रही थी। अमन आया, तो मुरझाया-सा लग रहा था। सुखबीर ने रास्ते में स्कूटर रोककर उसे ठण्डी फ्रूटी पिलाई।
अमन फ्रूटी के पैक में स्ट्रा लगाए मजे से आम का रस ले रहा था। जल्द ही खुशी से उसका चेहरा खिल उठा।
देखकर सुखवीर भी खुश हुआ। पास से सरकारी स्कूल से लौटे दो बच्चे पैदल आ रहे थे। उनके गाल रूखे व होंठ सूखे हुए थे। अमन को दुकान की छाया में फ्रूटी पीते देखकर वे जरा ठिठके।
हसरत भरी नजरों से उसे देखते रहे। फिर सूखे होंठों पर जबान फेरते हुए आगे बढ़ गए। एक ने दूसरे से कहा- 'हमारी ऐसी किस्मत कहां!' दूसरे ने हामी भरते हुए कहा- 'ठीक कहते हो, भाई!' चलते-चलते उन्हे फ्रूटी का इस्तेमाल किया हुआ खाली पैक सड़क किनारे पड़ा दिखाई दिया। एक ने कसकर पैर से उसे ठोकर मारी। पैक हवा में लहराता हुआ एक नाली में जा गिरा। दोनों बच्चों ने जोर से ठहाका लगाया और खुशी-खुशी घर को चल दिए।