Thursday, October 1, 2009

53 प्रतिशत लड़कियां नहीं पहुंच पाती स्कूल

भले ही महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के सरकार दावे करता रहे, लेकिन हकीकत आज भी इन दावों को कोसो दूर है। देश में महिलाओं को हालात में सुधार की गति दावों के बहुत कम है। यही कारण है कि कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएं आज भी समाज में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। प्रतिदिन सात हजार लड़कियों को पेट में ही मौत की नींद सुला दी जाती है। वहीं संविधान द्वारा चौदह साल तक के बच्चों को दिए जाने वाले शिक्षा के अधिकार से भी यह बच्चियां वंचित हो रही है। इसके चलते नौ साल तक की उम्र तक पहुंचने के बाद भी 53 प्रतिशत लड़कियां स्कूल नहीं जा पा रही है।

चाइल्ड राइट एंड यू नामक गैर सरकारी संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण इलाकों में 15 प्रतिशत लड़कियों की शादी 13 साल की उम्र में ही कर दी जाती है। इनमें से लगभग 52 प्रतिशत लड़कियां 15 से 19 साल की उम्र में गर्भवती हो जाती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 73 प्रतिशत लड़कियों में खून की कमी है। वहीं अगर उनको डायरिया हो जाता है तो 28 फीसदी को कोई दवा नहीं दिलाई जाए। जयपुर में 51.50 प्रतिशत व ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 67 प्रतिशत पिताओं का कहना है कि अगर आर्थिक तंगी आती है वह अपनी बच्ची का स्कूल जाना बंद करवा देंगे। एक अनुमान के अनुसार 24 प्रतिशत लड़कियों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है। जो पढ़ना शुरू कर भी देती है उनमें से 60 प्रतिशत सेकेंड्री स्कूल तक भी नहीं पहुंच पाती है।

24 सितंबर को मनाए जाने वाले गर्ल चाइल्ड डे पर सीआरवाई ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह महिला व बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ सहित अन्य को अपनी मांगों का एक चार्टर सौंपा है। सीआरवाई के जनरल मैनेजर कुमार निलेंदू ने बताया कि जब तक सरकार व पब्लिक बड़े स्तर पर लड़कियों के एक समान विकास पर ध्यान नहीं देंगे तब तक इन परिस्थितियों को बदल पाना संभव नहीं है।





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