Thursday, October 1, 2009

नया आटो सवा लाख, कबाड़ तीन लाख

कहावत है जिंदा हाथी लाख और मरा सवा लाख का। दिल्ली की सड़कों से बाहर हुए हजारों आटोरिक्शा भी यही कहानी दोहरा रहे हैं। जी हां, नए आटोरिक्शा की शोरूम कीमत लगभग 1.25 लाख रुपये, कबाड़ की कीमत है ढाई से तीन लाख रुपये, जबकि मार्केट में आटो बिक रहा है चार से साढ़े चार लाख रुपये में। यानी राजधानी दिल्ली में आटोरिक्शा के परमिट की खुलेआम ब्लैक बिक्री।

करोड़ों के इस खेल में खरीददार होते हैं यूपी-बिहार के लोग। खेत-खलिहान बेचकर लगा देते हैं परमिट की बोली। यह तब से है, जब से आटो रिक्शा के नये परमिट पर रोक लगा है। साथ ही 55 हजार आटोरिक्शा से अधिक न होने पर पाबंदी है। पाबंदी लगने से पहले दिल्ली में 83000 आटो हुआ करते थे। सरकार भी जानती है, लेकिन खामोश है। अब हो सकता है, परमिट पर लगी पाबंदी हट जाए। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में बनी भूरे लाल कमेटी लोगों से नये परमिट जारी करने के संबंध में राय ले रही है। बात बन गई तो हजारों नये लोगों को अवसर तो मिलेंगे ही साथ ही पुराने परमिट की कीमतें भी कम हो जाएंगी।

होता यूं है कि आटो रिक्शा के 'सी', 'डी' एवं 'ई' सीरीज वाली गाड़ियां जो कबाड़ हो चुकी हैं, उन्हें खरीदा जाता है। इस कबाड़ की कीमत तो वैसे परिवहन विभाग के मुताबिक लगभग 5800 रुपये होता है। लेकिन, गाड़ी के साथ परमिट ढाई से तीन लाख रुपये में बिक जाता है। इसके बाद खरीददार परमिट अपने नाम करवा कर गाड़ी स्क्रैप करवा देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में दो से तीन महीने लगते हैं। परमिट और स्क्रैपिंग ओके होने के बाद खरीददार नया आटो 1.35 लाख रुपये में खरीद लेता है। इंश्योरेंस, नया मीटर, फिटनेस, प्रदूषण आदि कार्रवाई के बाद सड़क पर आते आते एक आटो की कीमत चार से साढे चार लाख रुपये तक हो जाती है। इस पूरे 'खेल' में शामिल होते हैं परिवहन विभाग के कर्मचारी, फाइनेंसर, ब्रोकर और आटो क्षेत्र की कुछ तथाकथित यूनियनें।

इस बावत टैक्सी आटो रिक्शा ड्राइवर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सोमनाथ, फेडरेशन ऑफ ऑल दिल्ली आटो टैक्सी ट्रांसपोर्टर्स के अध्यक्ष किशन वर्मा, भाजपा ट्रांसपोर्ट प्रकोष्ठ के संयोजक आनंद त्रिवेदी, राजिंदर सोनी आदि का कहना है कि सारा खेल परमिट का है। अगर नए परमिट पर लगी रोक हट जाए तो ब्लैक मार्केट एक दिन में खत्म हो जाए।


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