यो मत पूछ मन्नै तू िकतणी प्यारी सै,
तू ए मेरे मन के आंगण की फुलवारी सै।।
आग बुझे चूल्हे सा हो ज्या मेरा मन,
जब देखूं िक तेरी मायके की तैयारी सै।
खेत मेरे िदल का तेरे िबना बंजर सा हो रहया था,
तू हे उसमैं उपजी सरसो की क्यारी सै।
यो मत पूछ मन्नै तू िकतणी प्यारी सै,,,,,,
तू ए मेरे मन के आंगण की फुलवारी सै।।
आग बुझे चूल्हे सा हो ज्या मेरा मन,
जब देखूं िक तेरी मायके की तैयारी सै।
खेत मेरे िदल का तेरे िबना बंजर सा हो रहया था,
तू हे उसमैं उपजी सरसो की क्यारी सै।
यो मत पूछ मन्नै तू िकतणी प्यारी सै,,,,,,
3 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नाख़ून और रिश्ते - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह,क्या ठेठ बोली और और कितनी ठोस,खरी उत्पेक्षाएँ !
सक्सेना जी और ब्लाग बुलेिटन मेरे ब्लाग पर िटप्पणी के िलए आपका धन्यवाद
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