Monday, March 30, 2009

प्रतिवर्ष जुड़ते हैं तीन लाख मतदाता

आस्ट्रेलिया जितनी आबादी अपने भीतर समेटे दिल्ली में मतदाताओं की संख्या में 56 वर्षो में करीब एक करोड़ की वृद्धि हुई है। प्रथम से लेकर 15वीं लोकसभा के बीच प्रतिवर्ष करीब 1.75 लाख नए मतदाता जुड़ रहे है। वर्ष 84 के बाद से मतदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिल रही हैं। पिछले 25 वर्षो के दौरान तो प्रतिवर्ष मतदाताओं की संख्या में औसतन 3 लाख की वृद्धि हो रही है।
लोकसभा के प्रथम चुनाव में जहां मतदाताओं की संख्या करीब 9 लाख थी, वहीं इस वर्ष होने जा रहे चुनाव में करीब 1.10 करोड़ है। मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी के प्रमुख कारणों में से एक दिल्ली में रोजगार के ज्यादा अवसर होना है। मतदाताओं की भीड़ में सबसे ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। एक आंकड़े के अनुसार अभी कुल मतदाताओं का करीब 45 फीसदी हिस्सा पूर्वाचल के लोगों का है।
प्रारंभिक तीन लोकसभा चुनाव के दौरान (1951-62) मतदाताओं की संख्या में कोई उल्लेखनीय वृद्धि देखने को नहीं मिली। वर्ष 1951 में जहां मतदाताओं की संख्या करीब 9.50 लाख थी, वहीं 1962 में बढ़कर करीब 13 लाख हो गई। 8वें लोकसभा चुनाव 1984 तक दिल्ली में मतदाताओं की संख्या 3496781 हो गई थी। 33 वर्षो के दौरान मतदाताओं की संख्या में करीब 25 लाख की वृद्धि हुई। प्रतिवर्ष औसतन करीब 75 हजार मतदाता मतदाता सूची में जुड़ते गए।
इसके बाद मतदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि शुरू हो गई। 1984 में जहां मतदाताओं की संख्या 3496781 थी, वहीं 1089 में यह बढ़कर 5702828 हो गई। मतदाताओं की संख्या में करीब 63 फीसदी की वृद्धि हुई। मतदाताओं की संख्या में जबरदस्त वृद्धि 10वें (1991) व 11वें (1996) लोकसभा चुनाव के बीच देखी गई। वर्ष 1991 में यहां मतदाताओं की संख्या 6073156 थी, वहीं 1996 में बढ़कर 8058941 हो गई।
मतदाताओं की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि वर्तमान समय में दिखाई पड़ रही है। वर्ष 2004 से वर्ष 2009 के बीच मतदाताओं की संख्या में 23 लाख की वृद्धि हुई। 14वें लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या जहां 8712530 थी, वहीं 2009 के 15वें लोकसभा चुनाव के दौरान करीब 1.10 करोड़ हो गई। सभी लोकसभा सीटों पर औसतन करीब 16 लाख मतदाता हैं।

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