कही-अनकही
Saturday, February 27, 2010
ज़िन्दगी मनायेगी खुद अपनी होली
अबकी बारी कर कुछ ऐसा कमाल
छोड़ पिचकारी,रंग,अबीर, गुलाल
अपना ले खुशियाँ सब,छोड़ मलाल
तब निकलेंगी उम्मीदों की टोली
ज़िन्दगी मनायेगी खुद अपनी होली
फ़रियाद से पहले भर देगी झोली
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