Saturday, June 14, 2014

वारदात के 8 साल बाद फूटी इंसाफ की पहली किरण

पवन कुमार, नई दिल्ली 

बेटे की मौत का बोझ मन पर लिए एक 70 साल की बुजुर्ग विधवा आठ साल तक बेटे की हत्या की एफआईआर दर्ज कराने के लिए दिल्ली पुलिस के तमाम नौकरशाहों व मंत्रियों के चक्कर काटती रही, मगर किसी का भी दिल वृद्धा की करुण पुकार सुनकर नहीं पसीजा। मगर, अब इस बुजुर्ग महिला की करुण पुकार को सुनकर राजधानी की कड़कडड़ूमा कोर्ट ने उसे न्याय दिलाने की ठोस पहल की है। अदालत के दखल के बाद बुजुर्ग महिला को पूरा न्याय तो न सही मगर, न्याय की पहली किरण फूटती हुई जरूर दिखाई दी है। अदालत के सख्त रवैये के बाद आखिरकार गीता कालोनी थाना की पुलिस ने वारदात के आठ साल बाद बुजुर्ग महिला के बेटे की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया है और मामले की जांच भी शुरू कर दी है। महानगर दंडाधिकारी सुरभि शर्मा वत्स ने गांधी नगर निवासी 70 वर्षीय बुजुर्ग सतनाम कौर की शिकायत पर गंभीर रवैया अपनाते हुए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार भी लगाई और पुलिस की न्याय प्रणाली पर सवालिया निशान भी लगाए हैं। अदालत ने कहा कि हत्या जैसे गंभीर मामले में पुलिस द्वारा मुकदमा दर्ज न करना चौंकाने वाला रवैया है। इस मामले में पुलिस मुकदमा दर्ज कर तुरंत जांच करे। अदालत के आदेश पर गीता कालोनी थाना की पुलिस ने 16 जुलाई 2006 को कंवलजीत की जहर देकर की गई हत्या का मामला दर्ज कर लिया है।
 
  यह था पूरा मामला

 गांधी नगर निवासी 70 वर्षीय बुजुर्ग विधवा सतनाम कौर ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में कहा है कि वर्ष 2006 में उसके बड़े बेटे कंवलजीत व छोटे बेटे प्रीत पाल में गांधी नगर में 200 गज की एक प्रापर्टी को लेकर विवाद चल रहा था। इसी विवाद के चलते उसके बेटे प्रीतपाल ने अपने मित्र संजीव मित्तल व एक अन्य महिला के साथ मिलकर 16 जुलाई 2006 को कंवलजीत सिंह को जहर खिला दिया। मरने से पूर्व इस वारदात की सूचना कंवलजीत ने खुद 100 नंबर पर पुलिस को फोन करके दी थी। मगर, अस्पताल में बयान देने से पूर्व ही उसकी मौत हो गई थी। गीता कालोनी थाना की पुलिस ने इस मामले में आरोपियों से मिलीभगत कर कंवलजीत की मौत का मामला दर्ज नहीं किया। सतनाम कौर ने बताया कि उसने अपने बेटे की मौत पर इंसाफ के लिए अपनी बेटी हरविंदर कौर के साथ मिलकर पुलिस थाना, पुलिस अधिकारियों, दिल्ली के मंत्रियों के खूब चक्कर काटे। मगर उसे कहीं से भी इंसाफ नहीं मिला। उसने अदालत की भी शरण ली। महानगर दंडाधिकारी सुरभि शर्मा ने 14 मार्च को पुलिस को केस दर्ज करने का आदेश दिया। उसके बावजूद पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया। आरोपियों ने इस फैसले को सेशन कोर्ट में चुनौती दी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पीएस तेजी ने 27 मई को उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद सतनाम कौर ने दोबारा से अदालत में अर्जी दायर की। इस बार अदालत ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई और 7 जून को मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिया। पुलिस ने केस दर्ज कर उसकी प्रति अदालत में दाखिल कर दी है। 

Wednesday, June 11, 2014

फैसले का लाभ उन्हें भी, जिन्होंने न्याय नहीं मांगा : हाईकोर्ट

पवन कुमार, नई दिल्ली-
 न्याय पर सभी का हक होता है। पैसे वालों का भी और गरीबों का भी। कई बार कुछ गरीब लोग पैसा न होने के कारण उन्हें मिली सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील नहीं कर पाते। इस तरह के मामलों में अगर कोई अपील दायर करता है व उसे लाभ मिलता है और यदि अदालत महसूस करती है कि यह लाभ उन लोगों को भी दिया जाना चाहिए जिन्होंने अपील दायर नहीं की तो अदालत इस संबंध में आदेश जारी कर अपने फैसले का लाभ ऐसे लोगों को दे सकती है। यह टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए अपहरण व लूटपाट के एक मामले में सुनवाई करते हुए की है। खंडपीठ ने मामले में निचली अदालत द्वारा सात साल कैद की सजा पाए अभियुक्त चंदन, अफजल व मुकेश को राहत प्रदान करते हुए मामले से बरी कर दिया है। इसके साथ ही खंडपीठ ने इसी मामले में अपील दायर न करने वाले दो अभियुक्तों करन व आकाश को भी राहत प्रदान करते हुए उन्हें भी मामले में बरी कर दिया है। खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दंडू लक्ष्मी रेड्डी बनाम महाराष्ट्र सरकार, जयपाल बनाम चंडीगढ़, जशुभा भरत सिंह गोहिल बनाम गुजरात सरकार और बाहुबली गुलाब चंद बनाम दिल्ली प्रशासन के मामलों में दिए गए निर्णयों का हवाला दिया। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में अभियोजन यह भी साबित करने में नाकाम रहा है कि पीडि़त प्रशांत पांडेय ने उसके साथ हुई घटना की शिकायत 15 दिन की देरी से क्यों पुलिस में दर्ज कराई। मामले में की गई देरी संदेह पैदा करती है। इतना ही नहीं, पुलिस ने वारदात में कथित रूप से इस्तेमाल की गई कार में से पीडि़त के फिंगर प्रिंट की जांच नहीं कराई है। पूरे मामले में जांच में कई खामिया हैं। ऐसे में अभियुक्तों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

  यह था पूरा मामला

पेश मामले में आदर्श नगर थाने में प्रशांत पांडेय ने 14 मार्च 2010 को अपहरण व लूटपाट का एक मामला दर्ज कराया था। पांडेय का कहना था कि 27 फरवरी 2010 को मुकरबा चौक, करनाल बाईपास स्थित एक प्री-पेड टीएसआर बूथ से उसने एक आटो वेस्ट पटेल नगर जाने के लिए लिया। जब उसका आटो आदर्श नगर फ्लाईओवर के पास पहुंचा तो पीछे से एक मारुति कार अचानक आई और ऑटो के आगे लगाकर रोक दिया। उसमें से तीन-चार युवक उतरे और उन्होंने देसी कट्टे के बल पर जबरन उसका अपहरण कर उसे कार में बैठा दिया। कार में छह युवक सवार थे। उन्होंने उसका लैपटॉप व दो मोबाइल फोन छीन लिए। इसके बाद उसका एचडीएफसी बैंक का एटीएम कार्ड छीना और उसके माध्यम से दुर्गापुरी व मौजपुर के एटीएम से 10-10 हजार रुपये निकलवाए। बाद में उन्होंने उसे उस्मानपुर के पास कार से फेंक दिया और फरार हो गए। वह डरा हुआ था इसलिए सीधे अपने गांव चला गया। वापस लौटने पर उसने पुलिस को शिकायत दी। पुलिस ने मामले में जांच के बाद चंदन, अफजल, मुकेश, करन, आकाश व नासिर को गिरफ्तार किया था। निचली अदालत ने मामले में नासिर को बरी कर दिया था, जबकि अन्य पांचों को सात साल कैद की सजा सुनाई थी। इस निर्णय को चंदन, अफजल व मुकेश ने हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी जबकि करन और आकाश ने कोई याचिका दायर नहीं की थी।

Tuesday, June 10, 2014

यो मत पूछ मन्‍नै तू िकतणी प्‍यारी सै

यो मत पूछ मन्‍नै तू िकतणी प्‍यारी सै, 
 तू ए मेरे मन के आंगण की फुलवारी सै।। 

 आग बुझे चूल्‍हे सा हो ज्‍या मेरा मन,
 जब देखूं िक तेरी मायके की तैयारी सै। 

 खेत मेरे िदल का तेरे िबना बंजर सा हो रहया था, 
तू हे उसमैं उपजी सरसो की क्‍यारी सै।

 यो मत पूछ मन्‍नै तू िकतणी प्‍यारी सै,,,,,,