Friday, May 22, 2009

अब मोबाइल पर होगी परीक्षा!

कॉरसपोन्डेंस कोर्स करने वाले छात्रों को अब स्टडी सेंटर के चक्कर लगाने से भी छुट्टी मिलेगी। अब वो पूरी पढ़ाई अपनी सहूलियत के मुताबिक कर सकेंगे। यहां तक कि परीक्षा देने के लिए भी उन्हें कहीं नहीं जाना पड़ेगा।
वो अब मोबाइल फोन पर ही परीक्षा दे सकेंगे। मुंबई का SNDT विश्वविद्यालय अपने कॉरसपोन्डेंस के छात्रों के लिए इस सुविधा की शुरुआत करने जा रहा है।
इतना ही नहीं इन परीक्षार्थियों को अब परीक्षा के रिजल्ट का भी इंतजार नहीं करना पड़ेगा और प्रश्नपत्र के आखिरी सवाल का जवाब देते ही परीक्षा परिणाम उनके मेल बाक्स में पहुंच जाएगा। एस एन. डी. टी. विश्वविद्यालय ने टेलीटैक कंपनियों के सहयोग से देश के युवा वर्ग के लिए खासकर ग्रामीण युवाओं के लिए मोबाइल के माध्यम से सभी वर्ग के युवाओं को पढ़ाने का कार्यक्रम बनाया है।
महाराष्ट्र के राज्यपाल एस. एम. कृष्णा बुधवार को विश्वविद्यालय के पाटकर हाल में इस कार्यकाम की शुरुआत करेंगे। विश्वविद्यालय ने इस कार्यक्रम के लिए टाटा टेली सर्विसेज तथा इंडियन PCO टेलिसर्विसेज के साथ समझौता किया है।
सूत्नों का कहना है कि फिलहाल यह कार्यक्रम हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में उपलब्ध है लेकिन जल्द ही इसे दूसरी भाषाओं में भी तैयार किया जाएगा। ग्रामीण इलाकों के छात्नों को इस कार्यकाम से जोड़ने के लिए भारत संचार निगम की बीएसएनएल की फोन सेवा का उपयोग किया जाएगा।

Wednesday, May 20, 2009

टूट गया रूबीना का आशियाना


ऑस्कर विजेता फ़िल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' की बाल कलाकार रूबीना अली का घर भी बुधवार को मुंबई में स्थानीय प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर तोड़ दिया.
रूबीना अपने परिवार के साथ मुंबई के बांद्रा पूर्व में स्थित ग़रीब नगर इलाक़े में स्थित झोपड़पट्टी में रहती हैं.
उनकी माँ ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके पति और बेटी के साथ मारपीट भी की.



अवैध मकान
पिछले हफ्ते ही रूबीना के साथी कलाकार अज़हरुद्दीन का घर भी तोड़ दिया गया था.
बुधवार सुबह 11 बजे रेलवे के कुछ अधिकारियों के साथ ही बड़ी संख्या में पुलिस बल ग़रीब नगर की बस्ती में अवैध रूप से बनाए गए कुछ मकानों को गिराने पहुँचा.
इन घरों में एक घर रूबीना अली का भी था. घटना के समय रूबीना और उसके परिवार वाले घर से बाहर थे. उन्हें जैसे ही इस की ख़बर मिली वे आनन-फानन में वहाँ पहुँचे.
रूबीना की माँ मुन्नी कुरैशी ने पुलिस पर मारपीट का आरोप लगाते हुए कहा कि इस घटना में उनके पति को काफ़ी चोट आई है.
उन्होंने बताया, "हम लोग 11 बजे कुछ सामान खरीदने बाहर गए हुए थे लौटने पर पता चला कि हमारे घर को तोड़ने के लिए पुलिस आई है. रूबीना के पिता ने मुझे वहाँ जाने से मना किया लेकिन मैने कहा कि मुझे अपना सामान वहाँ से निकालना है."
उन्होंने बताया कि पुलिस ने मुझे वहाँ से खदेड़ दिया और मेरे पति को बुरी तरह मारापीटा। इसमें उन्हें काफ़ी चोट लगी है.



सामान्य कार्रवाई
रेल प्रशासन पहले भी मुंबई में स्टेशनों के आसपास अवैध रूप से बने घरों को तोड़ता रहा है. पश्चिम रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी सी डेविड ने बीबीसी से बातचीत में इसे सामान्य कार्रवाई बताया.
'स्लमडॉग मिलियनेयर' के कलाकार जब ऑस्कर जीतकर मुंबई लौटे थे तो इन बच्चों को महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी घर देने का वादा तो किया था लेकिन वह अभी तक पूरा नहीं हो पाया है.
'स्लमडॉग मिलियनेयर' ने पूरी दुनिया में अब तक 326 मिलियन डॉलर यानि क़रीब 16 सौ करोड़ रुपए की कमाई की है.
लोगों का मानना है कि फ़िल्म ने चाहे जितनी भी कमाई की हो लेकिन उसके ये कलाकार आज भी एक छत के मोहताज़ हैं. फ़िल्म की कमाई का इन बच्चों की ज़िंदगी पर नहीं पड़ा है.

53 ट्रेनों का ठहराव, 15 हजार यात्री पर कर्मचारी सिर्फ एक

एक कहावत है कि ऊंट के मुंह में जीरा अर्थात जरूरत ज्यादा की और हाथ आया केवल तिनका। कुछ ऐसा ही हाल है विवेक विहार रेलवे स्टेशन का। कहने को तो विवेक विहार रेलवे स्टेशन को बने हुए 32 वर्ष बीत चुके हैं, मगर जब बात यहां के संसाधनों और सुविधाओं की बात आती है तो वे न के बराबर ही हैं। विवेक विहार रेलवे स्टेशन पर इस समय 53 गाडि़यों का ठहराव है और रोजाना 15 हजार के करीब यात्री इस रेलवे स्टेशन से अपने विभिन्न गंतव्यों पर जाते हैं। इतने लोगों को टिकट व पास की सुविधा मुहैया कराने के लिए रेलवे प्रशासन ने यहां पर सिर्फ एक ही कर्मचारी रख छोड़ा है। यही कर्मचारी रेलवे स्टेशन पर टिकट भी काटता है और यहां से गुजरने वाली ट्रेनों को हरी व लाल झंडी दिखाने का काम भी करता है। ऐसे में लोगों को रोजाना पेश आने वाली परेशानियों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि विवेक विहार रेलवे स्टेशन को वर्ष 1976 में रेल यात्रियों की पुरजोर मांग पर बनाया गया था। उस समय लोगों को तनिक भी अनुमान नहीं था कि एक दिन यही रेलवे स्टेशन खामियों के चलते उनकी परेशानियों का कारण भी बन जाएगा। उस समय यहां पर चार कर्मचारियों की तैनाती की गई थी, जोकि धीरे-धीरे घट कर आज मात्र एक कर्मचारी रह गया है। इस समय विवेक विहार रेलवे स्टेशन पर एक ही कर्मचारी है, जो यहां पर प्रतिदिन आने वाले करीब 15 हजार यात्रियों के लिए टिकट काटने व पास बनाने तक के सभी काम करता है। इतना ही नहीं, जब कोई विशेष ट्रेन विवेक विहार रेलवे स्टेशन से गुजरती है तो स्टेशन पर तैनात यह एक मात्र कर्मचारी ही अपने बाकी सभी काम छोड़ कर ट्रेन को सिग्नल के अनुसार हरी या लाल झंडी दिखाकर संदेश प्रसारित करता है।
इससे रोजाना यहां पर टिकट के लिए लोगों की लंबी लाइनें लगती हैं। इतना ही नहीं, ऐसे में लोगों के बीच धक्का-मुक्की व मारपीट आम बात हो गई है। यहां इस समय न तो कोई सफाई कर्मी है और न ही सुरक्षाकर्मी। इससे यहां अराजक तत्वों का बोलबाला रहता है। अपनी सुविधा को लेकर रेलयात्री दर्जनों बार रेल अधिकारियों को सूचित कर चुके हैं, मगर अधिकारियों के कानों पर कभी जूं तक न रेंगी।
इस बारे में दैनिक यात्री संघ के संस्थापक एमबी दुबे बिजनौरी ने बताया कि विवेक विहार रेलवे स्टेशन को बने 32 वर्ष बीत चुके हैं, मगर हर साल यहां पर सुविधाएं बढ़ाने की बजाए रेलवे प्रशासन घटाता ही चला जा रहा है। उन्होंने कहा कि दैनिक यात्री संघ पिछले पांच साल से विवेक विहार रेलवे स्टेशन पर रेल कर्मचारियों की संख्या और सुविधाएं बढ़ाने की मांग कर रहा है, मगर कोई ध्यान रेल प्रशासन ने नहीं दिया।
इस बारे में रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी अमर सिंह नेगी ने बताया कि सभी छोटे रेलवे स्टेशनों पर टिकट काटने का ठेका रेलवे द्वारा ठेकेदारों को दिया गया है। वे खुद पूरी व्यवस्था यात्रियों के लिए करते हैं। फिर भी अगर दैनिक यात्री ज्यादा परेशान हैं तो वे सीधे डीआरएम से मिलकर अपनी बात रखें और उन्हें अपनी समस्या बताएं। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए जल्द ही उचित प्रयास किए जाएंगे।

एंटी करप्शन ब्रांच के एसीपी को करप्शन में जेल

दिल्ली पुलिस किस तरह से लोगो को अपराध के दलदल में फेंकने का काम करती है और अपना स्वार्थ पुरा न होने पर किस तरह से लोगो को झूटे मुकदमो में फंसने का काम करती है इसका नज़ारा कड़कड़डुमा कोर्ट में देखने को मिला । यहाँ पर एक व्यक्ति को जबरन घर से उठाकर उसके परिजनों से 25 हजार रुपये मांगने के आरोप में अदालत ने दिल्ली पुलिस के एंटी करप्शन ब्रांच के एसीपी, एक एएसआई और कांस्टेबल को जेल भेज दिया है। जब एसीपी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था, उस समय वे आनंद विहार थानाध्यक्ष हुआ करते थे। यह फैसला कड़कड़डूमा कोर्ट स्थित एसीएमएम राकेश पंडित की अदालत ने सुनाया है।
न्यू संजय अमर कालोनी निवासी पुष्पा रानी ने 2 जुलाई 2005 को अदालत में तत्कालीन थानाध्यक्ष वाईएस नेगी, एएसआई जयप्रकाश और कांस्टेबल प्रेमपाल के खिलाफ अर्जी दी थी। पुष्पा रानी का कहना था कि नेगी और जयप्रकाश ने उनसे 8 जून 2004 को 2 हजार रुपये की मांग की थी। उन्होंने रकम देने से मना करते हुए इस संबंध में आला अधिकारियों को शिकायत की थी। 16 मई 2005 को सुबह साढ़े 10 बजे नेगी, जयप्रकाश और प्रेमपाल जबरन उनके घर में घुस गए। तीनों पुलिसकर्मियों ने पुष्पा के पति रामप्रसाद की खूब पिटाई की और घर से बाहर ले आए। पड़ोसी अजय कुमार ने बीच-बचाव का प्रयास किया तो पुलिस कर्मियों ने उसे धमका कर वहां से हटा दिया। इसके बाद नेगी के कहने पर प्रेमपाल ने उनकी दुकान के गल्ले से 6200 रुपये निकाल लिये और रामप्रसाद को थाना आनंद विहार ले गए। पुलिसकर्मियों ने रामप्रसाद को छोड़ने की एवज में पुष्पा से 25 हजार रुपये मांगे। पुष्पा ने रुपये नहीं दिये तो पुलिसकर्मियों ने रामप्रसाद पर शराब तस्करी का मामला दर्ज कर उसके पास से 10 बोतल शराब बरामद दिखा दी। तीनों पुलिसकर्मियों को कई बार सम्मन भेज कर अदालत ने तलब किया, मगर तीनों पेश नहीं हुए। इसके पश्चात तीनों के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया गया। सोमवार सुबह मौजूदा समय में एंटी करप्शन ब्रांच के एसीपी वाईएस नेगी, एएसआई जयप्रकाश और कांस्टेबल प्रेमपाल एसीएमएम राकेश पंडित की अदालत में पेश हुए। अदालत ने तीनों पुलिस कर्मियों की जमानत अर्जी खारिज करते हुए 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

Tuesday, May 19, 2009

लेखक बन रहे है राजनेता

राजनीति के गलियारों में खासी धमक रखने वाले कई राजनेता इन दिनों अपनी स्मृतियों को कलमबद्घ करने में लगे हुए है, जो आने वाले कुछ महीनों में पुस्तक के रूप में बाजार में आ जाएंगी।

इन बहुप्रतीक्षित पुस्तकों में चौदहवीं लोकसभा के अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की पुस्तक भी शामिल है। हार्पर कोलिंस नामक प्रकाशन गृह और सोमनाथ दा के बीच इस पुस्तक को एक साल में पूरा करने का करार हुआ था। उनके लोकसभा और पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होने के कारण इस पुस्तक के निश्चित समयसीमा के अंदर ही समाप्त होने की उम्मीद की जा रही है। इसके अतिरिक्त उन्होंने पेंग्विन इंडिया से बंगाल की राजनीति पर आधारित एक पुस्तक लिखने का अनुबंध भी किया है। सोमनाथ दा के राजनैतिक कॅरियर में काफी विवादास्पद घटनाओं के होने और सीपीएम से उनके आक्रामक अलगाव के कारण पाठक बहुत ही बेचैनी से प्रतीक्षा कर रहे है कि आखिर वह कहना क्या चाहते हैं? वह खुद भी इस पुस्तक को थोड़ा खट्टा और थोड़ा मीठा बताकर पूर्व प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। बहुत सारे लोग यह अनुमान भी लगा रहे है कि इसमें वामपक्ष पर तीखा प्रहार किया गया होगा, जो एक बार फिर नई बहस को जन्म देगा।

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और गृहमंत्री के रूप में उपेक्षा के शिकार बने शिवराज पाटिल भी अपनी स्मृतियों को पुस्तक का रूप देने में लगे है। माना जा रहा है कि पाटिल को किसी प्रकाशक ने फायनेंस नहीं किया है। प्रकाशन उद्योग के सूत्रों की मानें तो उनकी पुस्तक में कोई भी विवादास्पद बात नहीं होगी। पाटिल के महाराष्ट्र के सहयोगी ए.आर. अंतुले भी जीवनी लिखने में मशगूल है।

कांग्रेस के एक और वयोवृद्घ नेता अर्जुन सिंह के जीवन की कहानी को पत्रकार रामशरन जोशी कागज पर उतार रहे है। 'एक सहयात्री इतिहास का' नामक यह पुस्तक लगभग तैयार तो है, पर इसका विमोचन चुनाव के बाद किया जाएगा। कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा इसके विवादास्पद व विस्फोटक लेखन के कारण किया जा रहा है। उदाहरणस्वरूप पुस्तक में अर्जुन की कांग्रेस के लिए पूर्ण प्रतिबद्घता के बाद भी उपेक्षा मिलने की बात की गई है। एक स्थान पर आत्मकथा लेखक जोशी ने लिखा है कि सोनिया गांधी द्वारा अर्जुन सिंह को राष्ट्रपति न बनाए जाने पर उन्हें व उनके परिवार को गहरा धक्का लगा था। इसी कड़वाहट के परिणामस्वरूप उनकी बेटी ने लोकसभा का चुनाव स्वतंत्र रूप से कांग्रेस के विरुद्घ लड़ने का निर्णय लिया था। आशा की जा रही है कि यह पुस्तक ऐसी ही कुछ कड़वाहटों को बाहर लाएगी। इसके प्रकाशक राजकमल प्रकाशन का कहना है कि चुनावों के बाद शीघ्र ही यह पुस्तक बाजार में होगी।

प्रणव मुखर्जी भी ऐसी ही एक कहानी लिखने में जुटे है। विदेश मंत्री की जिम्मेदारियां संभालने के साथ ही प्रणव अपनी पार्टी के मुख्य कर्ता-धर्ता व खेवनहार रहे हैं। मंत्रिमंडल का शायद ही ऐसा कोई समूह या समिति होगी जिसमें वे किसी न किसी रूप में शामिल न रहे हों। घटनाप्रधान राजनैतिक जीवन और उतनी ही घटनाप्रधान स्मृतियों के कारण आशा की जा रही है कि उनकी यह पुस्तक उस समय के लोगों के जीवन का वर्णन भी करेगी। उन्होंने भले ही अभी तक कोई प्रकाशक नहीं चुना हैं पर उम्मीद जताई जा रही है कि एक बार वह इसके लिए तैयार होने पर उनके पास बहुत सारे विकल्प होंगे।