Saturday, May 9, 2009

चौंधिया देती है कुर्सी की चमक

चुनावी महाकुंभ के समय में जब चारों ओर सिर्फ कुर्सी के लिए ही मारामारी हो रही है, तो देखने में अदना सी लगने वाली कुर्सी की महत्ता अपने आप ही समझ आ जाती है।
यूं तो विक्रमादित्य और राम के इस देश भारत में सिंहासन न्यायप्रियता का प्रतीक माना जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में दो अक्षर के इस शब्द के मायने ही बदल गए हैं। अब कुर्सी उस शक्ति का प्रतीक बन गई है, जिस पर बैठते ही व्यक्ति अपने को सर्वशक्तिमान समझने लगता है।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे ऊंची कुर्सी की दौड़ में मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आडवाणी सबसे आगे हैं, लेकिन मायावती, शरद पवार और लालू प्रसाद यादव भी गाहे-बगाहे इसकी सवारी करने की अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं।
ऐसा नहीं है कि छोटी सी कुर्सी के चारों ओर घूमने में केवल भारत के लोग ही आगे हैं, इसने तो पूरी दुनिया के लोगों को ही अपने चारों ओर चक्कर कटवा रखा है। इसे कुर्सी की ही महत्ता कहा जाएगा कि दुनिया के एक सबसे शक्तिशाली देश के लोगों ने एक अश्वेत के कुर्सी पर विराजते ही उसके सामने झुकना शुरू कर दिया है। यह बात ध्यान रखने वाली है कि यह देश सालों से गोरों की ही शक्ति का प्रतीक रहा है।
बात अगर भारतीय राजनीति की करें तो पता चलेगा कि भारत में तो कुर्सी प्रेम ने सारे रिकार्ड ही तोड़ दिए हैं। भारतीय राजनेताओं के बीच अब एक नई परंपरा ने जोर पकड़ लिया है। खुद को कुर्सी मिलने की संभावना न दिखे तो तुरंत अपनी पत्नी को उस पर विराजमान कराने की जुगत बिठानी शुरू कर देते है। लालू प्रसाद यादव के इस परंपरा की नींव रखते ही मोहम्मद शहाबुद्दीन, सूरजभान, प्रियरंजन दासमुंशी और पप्पू यादव जैसे नेता उनके रास्ते पर चल निकले।
कई राजनेता ऐसे भी हैं, जो स्वयं वर्षो' से कुर्सी का सुख भोग रहे हैं और उनकी संतानें भी इसी राह पर अग्रसर हो रही हैं। वैसे तो यह सूची बहुत लंबी है पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, शरद पवार, अर्जुन सिंह, करूणानिधि, मुरली देवड़ा, मुलायम सिंह यादव और वसुंधरा राजे सिंधिया जैसे नेताओं के नाम इसमें प्रमुख हैं।
कुर्सी के जलवे ने क्रिकेट के मैदान में चौके-छक्के जड़ने वालों पर भी अपनी जादू की छड़ी घुमा दी। यही कारण है कि मोहम्मद अजहरूद्दीन, नवजोत सिद्धू और चेतन शर्मा जैसे क्रिकेटर भी संसद में अपनी कुर्सी रिजर्व कराने के लिए चुनाव मैदान में कूद पडे हैं।
फिल्म उद्योग भी इस कुर्सी के आकर्षण से वंचित नहीं रहा। विनोद खन्ना, जयाप्रदा, शेखर सुमन, शत्रुघ्न सिन्हा, चिरंजीवी आदि इसके उदाहरण हैं। यह बात दीगर है कि पिछला लोकसभा चुनाव बीकानेर से भाजपा के टिकट पर जीत चुके अभिनेता धर्मेद्र से मतदाता इसलिए नाराज हो गए क्योंकि इस ही मैन ने सांसद की कुर्सी हासिल करने के बाद मतदाताओं को ही बिसरा दिया।
कुर्सी सेहत से भी जुड़ी है। अगर आप कंप्यूटर पर काम करते हैं और आपकी कुर्सी का आकार मेज के अनुरूप नहीं है तो आपकी कुहनी से लेकर पीठ तक में दर्द हो सकता है और आपको डाक्टर की कुर्सी तक का रूख करना पड़ सकता है। एक बात और आपातकाल के दौरान अमृत नाहटा द्वारा एक फिल्म बनाई थी जिसका शीर्षक था 'किस्सा कुर्सी का', लेकिन कुर्सी पर बैठे लोग इस किस्से से इतना खफा हुए कि उन्होंने इस फिल्म पर ही रोक लगा दी थी।

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