आधुनिक जांच का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस की पोल छावला से अपहृत 14 वर्षीय छात्र की मौत ने खोल कर रख दी है। दो किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित दो थानों की पुलिस ने क्षेत्र से लापता छात्र के शव की पहचान करने में दो माह से ज्यादा समय लगा दिया। इस मामले ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल खड़ा कर दिया है। घरवालों के मुताबिक आरोपियों के प्रभाव में आकर पुलिस ने मामले को जानबूझ कर दबाने का प्रयास किया है, जबकि सूत्र इसे पुलिस की निष्क्रियता का परिणाम बता रहे हैं।
ज्ञात हो कि श्यामा देवी नजफगढ़ स्थित दुर्गा विहार फेज-एक में रहती हैं। उनकी तीन बेटियां हैं, जबकि जितेंद्र उर्फ बिल्लू (14) इकलौता बेटा था। उनके पति किशन कुमार की ंवर्षो पहले ट्रेन हादसे में मौत हो चुकी है। पति की मौत के बाद से श्यामा देवी एक्सपोर्ट की फैक्टरी में काम कर किसी तरह घर का गुजारा कर रही है। जितेंद्र स्थानीय पब्लिक स्कूल में 8वीं कक्षा में पढ़ता था।
परिजनों का मुताबिक उनके पड़ोस में दिल्ली पुलिस के एक कर्मचारी का मकान बन रहा था। उसकी देखरेख उसके दो संबंधी युवक कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जितेंद्र से दोस्ती गांठ ली थी। 21 मार्च को उन युवकों ने फोन कर उनकी बेटी से अपशब्द कहना शुरू कर दिया था। फोन करने से माना करने पर उसने धमकी भी दी थी। इसका पता बाद में जितेंद्र को चला था। 22 मार्च की सुबह दस बजे वह इसकी जानकारी करने उन युवकों के पास उसके निर्माणाधीन मकान पर गया था। उसके बाद से ही जितेंद्र का गायब था।
उसका शव उसी दिन नजफगढ़ इलाके के झड़ौदा तालाब से मिला था। मामा मेघ सिंह के मुताबिक स्थानीय लोगों ने इसकी सूचना नजफगढ़ पुलिस को दी थी। साथ ही उन्होंने यह बताया कि मोटरसाइकिल पर आए दो युवक तालाब में उसे डूबोकर वहां से फरार गए थे। आश्चर्य की बात यह कि मामले के जांच अधिकारी ने उसकी पहचान तक कराना उचित नहीं समझा। उसने शव को राव तुलाराम अस्पताल में रखवा दिया तथा बाद में लावारिस घोषित कर 8 अप्रैल को ही उसका दाह संस्कार भी करवा दिया।
इस दौरान छात्र की बरामदगी के लिए परिजन छावला थाने का चक्कर काटते रहे, लेकिन पुलिस ने अपने पास के थाने में मिले शव के संबंध में जानकारी जुटाने की जरूरत नहीं समझी। परिजनों के दबाव के बाद अंत में छावला पुलिस ने 22 मार्च को झाड़ौदा तालाब से मिले किशोर के कपड़े की पहचान जितेंद्र के परिजनों को कराई। कपड़ों के आधार पर परिजनों ने उसकी पहचान की।
इस घटना ने न केवल परिजनों, बल्कि क्षेत्रवासियों को हिला कर रखा दिया। घटना के बाद जहां सीधी तौर पर पुलिस कटघरे में खड़ी दिख रही है, वहीं इसने विभागीय जांच प्रक्रिया की पोल खोलकर रख दी। दरअसल नजफगढ़ व छावला थाना आसपास होने के साथ ही एक ही एसीपी रेंज के अंतर्गत आता है। इसके अंतर्गत आने वाले सभी थानों की जानकारी ऊपर के अधिकारियों तक पहुंचती है। इसके बावजूद छात्र की पहचान होने में इतनी देरी क्यों हुई, यह अबूझ सवाल है।
सूत्रों की मानें तो इस मामले में नजफगढ़ थाना पुलिस कम दोषी नहीं है जिसने झड़ौदा में मिले शव की जानकारी अन्य थानों में नहीं दी। बाद में शव का गुपचुप तरीके से उसका दाह-संस्कार भी करा दिया। स्थिति है कि पोस्टमार्टम के डेढ़ माह से ज्यादा बीत जाने के बावजूद इसकी रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई पाई है जिससे मौत पर रहस्य बरकरार है।
दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत का कहना है कि लापरवाही के आरोप में मामले की जांच कर रहे जांच अधिकारी को निलंबित कर दिया है। इसके बाद पुलिस मामले की दोबारा तहकीकात कर रही है। उन्होंने बताया कि अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आई है। रिपोर्ट के बाद छात्र की मौत के कारणों का पता चल पाएगा।
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