सुखबीर को अपने इकलौते बेटे अमन से बड़ा लगाव था। यों तो स्कूल की वैन-सर्विस थी, लेकिन सुबह उसे स्कूल छोड़ने व दोपहर छुट्टी के समय उसे घर लाने के लिए, वह स्वयं स्कूल जाता था। वह इसी में खुश और संतुष्ट था। आज भी तपती दोपहरी में वह स्कूटर पर उसे लेने गया। लू चल रही थी। अमन आया, तो मुरझाया-सा लग रहा था। सुखबीर ने रास्ते में स्कूटर रोककर उसे ठण्डी फ्रूटी पिलाई।
अमन फ्रूटी के पैक में स्ट्रा लगाए मजे से आम का रस ले रहा था। जल्द ही खुशी से उसका चेहरा खिल उठा।
देखकर सुखवीर भी खुश हुआ। पास से सरकारी स्कूल से लौटे दो बच्चे पैदल आ रहे थे। उनके गाल रूखे व होंठ सूखे हुए थे। अमन को दुकान की छाया में फ्रूटी पीते देखकर वे जरा ठिठके।
हसरत भरी नजरों से उसे देखते रहे। फिर सूखे होंठों पर जबान फेरते हुए आगे बढ़ गए। एक ने दूसरे से कहा- 'हमारी ऐसी किस्मत कहां!' दूसरे ने हामी भरते हुए कहा- 'ठीक कहते हो, भाई!' चलते-चलते उन्हे फ्रूटी का इस्तेमाल किया हुआ खाली पैक सड़क किनारे पड़ा दिखाई दिया। एक ने कसकर पैर से उसे ठोकर मारी। पैक हवा में लहराता हुआ एक नाली में जा गिरा। दोनों बच्चों ने जोर से ठहाका लगाया और खुशी-खुशी घर को चल दिए।
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