साहब ने आफिस में घुसते ही अपने पी.ए. से कहा- ''कल जो नया बाबू आया है, उसे मेरे पास भेजो।'' ''जी सर।'' थोड़ी देर में नवनियुक्त बाबू डरता-कांपता साहब के कमरे में हाजिर हुआ। ''क्या नाम है?'' ''संदीप।'' ''घर कहां है?''
''प्रतापगढ़''। ''क्यों आज मंगलवार है?'' ''नहीं सर, आज बुधवार है।'' साहब अभी तक फाइल में ही नजरे गड़ाये थे। लेकिन जब एक बाबू ने उनकी बात काटी, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्होंने घूरती नजरों से संदीप को देखा। संदीप कांप गया। ''तुम मुझसे ज्यादा जानते हो?'' ''नहीं सर। मैंने आज सुबह अखबार में पढ़ा था।'' ''अखबार भी तुम जैसे नाकारा ही छापते है।'' ''लेकिन सर, मेरी कलाई घड़ी में भी आज बुधवार है।'' ''गेट आउट फ्राम हियर।''
संदीप के बाहर जाते ही साहब ने बड़े बाबू मनोहरलाल को बुलवाया। बड़े बाबू के आते ही उन्होंने पूछा- ''क्यों बड़े बाबू, आज मंगलवार है?'' ''जी सर।'' ''गुड, नाउ यू कैन गो।''
3 comments:
अधिकतर अफसर ऐसे होते हैं, खुद मेरे पिताजी भी इसी तरह खुशामदपसंद थे.
boss is alwayas right...bilkul theek kaha hai...wah..andaaj pasand aayaa....
vikas ji aapke dwara mere lekh par tippani k liye dhanyawad
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