तुम पे भी कोई तो मरता होगा,
एक पल भी तुमसे बिछड़ना इस से कोई तो डरता होगा,
तुम्हारे गमो को अपनी ख़ुशी से कोई तो भरता होगा,
तुम्हारे लिये दुनिया से कोई तो लड़ता होगा,
तुम्हारे दिल में भी कोई तो रहता होगा,
तुम पे भी कोई तो मरता होगा
Wednesday, October 20, 2010
Saturday, September 25, 2010
नज़रों से नज़रें मिली तो बुरा मान गए
नज़रों से नज़रें मिली तो बुरा मान गए
हम ने आँखों से इशारा किया तो बुरा मान गए
बात बात पैर मुस्कुराना उनकी आदत थी,
ज़रा सा हम ने जो हंसाया तो बुरा मान गए
हमें आजमाने की बात करते थे अक्सर,
जब हम ने आजमाया तो बुरा मान गए
प्यार में बेवफाई न करना वो कहते थे,
इसी बात को हम ने दोहराया तो बुरा मान गए
written by - another Person
हम ने आँखों से इशारा किया तो बुरा मान गए
बात बात पैर मुस्कुराना उनकी आदत थी,
ज़रा सा हम ने जो हंसाया तो बुरा मान गए
हमें आजमाने की बात करते थे अक्सर,
जब हम ने आजमाया तो बुरा मान गए
प्यार में बेवफाई न करना वो कहते थे,
इसी बात को हम ने दोहराया तो बुरा मान गए
written by - another Person
Thursday, September 2, 2010
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी
मैं ना तुझसे कभी हारा, पर मेरी जेब है तुझसे हारी
लड़ता रहता हूँ अपने आप से, इस ज़माने से
मगर यहाँ पर जीना है मौत से भारी!
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी
खटता रहता हु सारा सारा दिन काम में
मगर रात में भूख मिटती नहीं हमारी
मैं ना तुझसे कभी हारा, पर मेरी जेब है तुझसे हारी
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी
१०० के पेट्रोल में पहले जाता था एक हफ्ता, मगर अब
पूरा एक दिन भी नहीं चलती अपनी गाडी
खाना महंगा मगर यहाँ सस्ती है गाडी,
शायद इसी लिये अपने देश में बढ़ रहे हैं भिखारी
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी
मैं ना तुझसे कभी हारा, पर मेरी जेब है तुझसे हारी
लड़ता रहता हूँ अपने आप से, इस ज़माने से
मगर यहाँ पर जीना है मौत से भारी!
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी
खटता रहता हु सारा सारा दिन काम में
मगर रात में भूख मिटती नहीं हमारी
मैं ना तुझसे कभी हारा, पर मेरी जेब है तुझसे हारी
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी
१०० के पेट्रोल में पहले जाता था एक हफ्ता, मगर अब
पूरा एक दिन भी नहीं चलती अपनी गाडी
खाना महंगा मगर यहाँ सस्ती है गाडी,
शायद इसी लिये अपने देश में बढ़ रहे हैं भिखारी
हाय रे महंगाई तू कैसी है महामारी
Saturday, July 24, 2010
दोस्ती
मित्र मेरे जीवन की पुस्तक में एक पृष्ठ की तरह हैं,
एक अलग विषय के साथ प्रत्येक पृष्ठ,
लेकिन आप मेरी सूचकांक पृष्ठ रहे हैं,
जो मेरे जीवन के हर विषय को कवर कर रहे हैं.
एक अलग विषय के साथ प्रत्येक पृष्ठ,
लेकिन आप मेरी सूचकांक पृष्ठ रहे हैं,
जो मेरे जीवन के हर विषय को कवर कर रहे हैं.
Sunday, July 11, 2010
प्रेम
आप कहेंगे, हम सब प्रेम करते हैं। मैं आपसे कहूं, आप शायद ही प्रेम करते हों; आप प्रेम चाहते होंगे। और इन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। प्रेम करना और प्रेम चाहना, ये बड़ी अलग बातें हैं। हममें से अधिक लोग बच्चे ही रहकर मर जाते हैं। क्योंकि हरेक आदमी प्रेम चाहता है। प्रेम करना बड़ी अदभुत बात है। प्रेम चाहना बिलकुल बच्चों जैसी बात है। छोटे-छोटे बच्चे प्रेम चाहते हैं। मां उनको प्रेम देती है। फिर वे बड़े होते हैं। वे और लोगों से भी प्रेम चाहते हैं, परिवार उनको प्रेम देता है। फिर वे और बड़े होते हैं। अगर वे पति हुए, तो अपनी पत्नियों से प्रेम चाहते हैं। अगर वे पत्नियां हुईं, तो वे अपने पतियों से प्रेम चाहती हैं। और जो भी प्रेम चाहता है, वह दुख झेलता है। क्योंकि प्रेम चाहा नहीं जा सकता, प्रेम केवल किया जाता है। चाहने में पक्का नहीं है, मिलेगा या नहीं मिलेगा। और जिससे तुम चाह रहे हो, वह भी तुमसे चाहेगा। तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। दोनों भिखारी मिल जाएंगे और भीख मांगेंगे। दुनिया में जितना पति-पत्नियों का संघर्ष है, उसका केवल एक ही कारण है कि वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम चाह रहे हैं और देने में कोई भी समर्थ नहीं है।
इसे थोड़ा विचार करके देखना आप अपने मन के भीतर। आपकी आकांक्षा प्रेम चाहने की है हमेशा। चाहते हैं, कोई प्रेम करे। और जब कोई प्रेम करता है, तो अच्छा लगता है। लेकिन आपको पता नहीं है, वह दूसरा भी प्रेम करना केवल वैसे ही है जैसे कि कोई मछलियों को मारने वाला आटा फेंकता है। आटा वह मछलियों के लिए नहीं फेंक रहा है। आटा वह मछलियों को फांसने के लिए फेंक रहा है। वह आटा मछलियों को दे नहीं रहा है, वह मछलियों को चाहता है, इसलिए आटा फेंक रहा है। इस दुनिया में जितने लोग प्रेम करते हुए दिखायी पड़ते हैं, वे केवल प्रेम पाना चाहने के लिए आटा फेंक रहे हैं। थोड़ी देर वे आटा खिलाएंगे, फिर...। और दूसरा व्यक्ति भी जो उनमें उत्सुक होगा, वह इसलिए उत्सुक होगा कि शायद इस आदमी से प्रेम मिलेगा। वह भी थोड़ा
प्रेम प्रदर्शित करेगा। थोड़ी देर बाद पता चलेगा, वे दोनों भिखमंगे हैं और भूल में थे; एक-दूसरे को बादशाह समझ रहे थे! और थोड़ी देर बाद उनको पता चलेगा कि कोई किसी को प्रेम नहीं दे रहा है और तब संघर्ष की शुरुआत हो जाएगी। दुनिया में दाम्पत्य जीवन नर्क बना हुआ है, क्योंकि हम सब प्रेम मांगते हैं, देना कोई भी जानता नहीं है। सारे झगड़े के पीछे बुनियादी कारण इतना ही है। और कितना ही परिवर्तन हो, किसी तरह के विवाह हों, किसी तरह की समाज व्यवस्था बने, जब तक जो मैं कह रहा हूं अगर नहीं होगा, तो दुनिया में स्त्री और पुरुषों के संबंध अच्छे नहीं हो सकते। उनके अच्छे होने का एक ही रास्ता है कि हम यह समझें कि प्रेम दिया जाता है, प्रेम मांगा नहीं जाता, सिर्फ दिया जाता है। जो मिलता है, वह प्रसाद है, वह उसका मूल्य नहीं है। प्रेम दिया जाता है। जो मिलता है, वह उसका प्रसाद है, वह उसका मूल्य नहीं है। नहीं मिलेगा, तो भी देने वाले का आनंद होगा कि उसने दिया।
अगर पति-पत्नी एक-दूसरे को प्रेम देना शुरू कर दें और मांगना बंद कर दें, तो जीवन स्वर्ग बन सकता है। और जितना वे प्रेम देंगे और मांगना बंद कर देंगे, उतना ही--अदभुत जगत की व्यवस्था है--उन्हें प्रेम मिलेगा। और उतना ही वे अदभुत अनुभव करेंगे-
Tuesday, July 6, 2010
बोले तो कोई comment नहीं करता
मुन्ना भाई :
बापू.....बोले तो अपुन को आज कल एक Problem हो गएला है ???
बापू
:
बोलो मुन्ना . दिल खोल के बोलो .
मुन्ना भाई :
अपुन को आज
कल ..... बोले तो कोई comment नहीं करता.
साला सब लोग गायब हो गयेले
हें...!!!
Bapu :
ऐसे नहीं बोलते मुन्ना. मेरे पास इस का हल है.
रास्ता मुश्किल है लेकिन जीत पक्की है.
मुन्ना भाई :
जल्दी बोलो
ना बापू,अगर तुमको Confidence हें तो अपुन ज़रुर करेगा.
बापू :
तो
सुनो..... तुम lekhiya करते रहो.... तब तक करते रहो.... जब तक तुम्हे कोई
comment नहीं करता.
कभी तो उनका ह्रदय परिवर्तन होगा. वोह भी तुम्हे
comment करेगा.
बोले तो, येह हें अपुन की GANDHIGIRI
बापू.....बोले तो अपुन को आज कल एक Problem हो गएला है ???
बापू
:
बोलो मुन्ना . दिल खोल के बोलो .
मुन्ना भाई :
अपुन को आज
कल ..... बोले तो कोई comment नहीं करता.
साला सब लोग गायब हो गयेले
हें...!!!
Bapu :
ऐसे नहीं बोलते मुन्ना. मेरे पास इस का हल है.
रास्ता मुश्किल है लेकिन जीत पक्की है.
मुन्ना भाई :
जल्दी बोलो
ना बापू,अगर तुमको Confidence हें तो अपुन ज़रुर करेगा.
बापू :
तो
सुनो..... तुम lekhiya करते रहो.... तब तक करते रहो.... जब तक तुम्हे कोई
comment नहीं करता.
कभी तो उनका ह्रदय परिवर्तन होगा. वोह भी तुम्हे
comment करेगा.
बोले तो, येह हें अपुन की GANDHIGIRI
Tuesday, May 25, 2010
पैसा बचाने के 10 तरीके
ऐसे बहुत से लोग है जिनकी आमदनी अच्छी-खासी है, लेकिन उन्हे पता भी नहीं चलता और आश्चर्यजनक ढंग से उनका पैसा समाप्त हो जाता है, जबकि बहुत से काम और अगली आमदनी के कई दिन बाकी रहते हैं। यह सिर्फ आपकी जेब में छेद होने से ही नही, आपकी गलत आदतों का भी परिणाम होता है। जानिए बचत के कुछ टिप्स-
[1. बाहर खाने से बचें]
अगर बार-बार बाहर खाने की आपकी आदत हो, तो कोशिश करके इससे बचें। बाहर का खाना जहां महंगा होता है, वहीं नुकसानदेह भी। आपका बजट अक्सर इससे भी गड़बड़ाता है।
[2. यात्रा व्यय पर नियंत्रण]
अगर आपके शहर में बस की बेहतर सुविधा उपलब्ध है, तो रोज ऑटो या टैक्सी पकड़ने के स्थान पर बस से आने-जाने की आदत डालें।
[3. चाय-कॉफी पर नियंत्रण]
आजकल ज्यादातर कार्यालयों में कर्मचारियों के लिए डिस्पेंसिंग मशीन चाय-कॉफी के लिए लगी होती है। मशीन वाली चाय-कॉफी पीना अपनी आदत बनाएं। बाहर से ऑर्डर पर ऐसी चीजें बार-बार लेने से, पता तो नहीं चलता पर पैसा काफी खर्च हो जाता है।
[4. लंच लेकर जाएं]
आजकल ऐसे इलेक्ट्रिक टिफिन आ रहे है जिनमें रखा खाना आप खाने से पहले चंद मिनटों में गरम कर सकते है। कुछ कार्यालयों में माइक्रोवेव होते है या किचेन में खाना गर्म करने की व्यवस्था होती है। इसे अपनाकर भी आप पैसा बचा सकती है।
[5. शॉपिंग पर नियंत्रण]
पैसा हाथ में आते ही यह जरूरी नहीं कि आप शॅापिंग पर निकल पड़े। इससे बेहतर होगा कि आप पहले आवश्यक सामान की लिस्ट बनाएं और उन्हे ही खरीदें।
[6. घर पर सौंदर्य की देखरेख]
आमतौर पर समय या श्रम को बचाने के लिए बाल धोने तक के लिए आप पार्लर चल देती है। यदि छोटे-मोटे काम घर पर ही कर लें तो आप बहुत सा पैसा बचा पाएंगी।
[7. सस्ता विकल्प देखें]
बहुत दिखावे वाले अत्यंत महंगे रेस्तरां में डिनर करने से जहां तक हो सके बचें। जरूरी नहीं कि महंगे होटलों व रेस्तरां में ही खाना अच्छा होता है, कई छोटे रेस्तरां भी सफाई व क्वालिटी का ध्यान रखते है।
[8. रिंगटोन लोड न करे]
बहुत से लोग मोबाइल हाथों में होने पर अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाते। उनके हाथ लगातार सक्रिय रहते है और इसीकारण वे अक्सर जाने-अनजाने नई से नई रिंगटोन लोडकर अपना बिल बढ़ाते रहते है।
[9. फिल्म देखनी हो तो]
यदि फिल्म देखनी हो, तो सीडी या डीवीडी लाकर घर पर फिल्म देखें। आज यदि दो लोग भी थियेटर पर फिल्म देखने जाते है, तो चार-पांच सौ रुपए खर्च हो जाते हैं। आप चाहें, तो किसी वीडियो लाइब्रेरी से सीडी लाकर भी फिल्म देख सकती हैं।
[10. यात्रा में बचत]
जब भी वीकएंड या किसी यात्रा पर जाना हो, तो कॉमिक या नॉवल घर से ले जाएं। लंबी यात्रा पर रास्ते में महंगी किताब खरीदने से बचेंगे और अपना पैसा बचा पाएंगे।
याद रखिए बूंद-बूंद से सागर बनता है। आप भी अपने सागर को बृहद बनाने की तरफ प्रयास कर सकती है।
[1. बाहर खाने से बचें]
अगर बार-बार बाहर खाने की आपकी आदत हो, तो कोशिश करके इससे बचें। बाहर का खाना जहां महंगा होता है, वहीं नुकसानदेह भी। आपका बजट अक्सर इससे भी गड़बड़ाता है।
[2. यात्रा व्यय पर नियंत्रण]
अगर आपके शहर में बस की बेहतर सुविधा उपलब्ध है, तो रोज ऑटो या टैक्सी पकड़ने के स्थान पर बस से आने-जाने की आदत डालें।
[3. चाय-कॉफी पर नियंत्रण]
आजकल ज्यादातर कार्यालयों में कर्मचारियों के लिए डिस्पेंसिंग मशीन चाय-कॉफी के लिए लगी होती है। मशीन वाली चाय-कॉफी पीना अपनी आदत बनाएं। बाहर से ऑर्डर पर ऐसी चीजें बार-बार लेने से, पता तो नहीं चलता पर पैसा काफी खर्च हो जाता है।
[4. लंच लेकर जाएं]
आजकल ऐसे इलेक्ट्रिक टिफिन आ रहे है जिनमें रखा खाना आप खाने से पहले चंद मिनटों में गरम कर सकते है। कुछ कार्यालयों में माइक्रोवेव होते है या किचेन में खाना गर्म करने की व्यवस्था होती है। इसे अपनाकर भी आप पैसा बचा सकती है।
[5. शॉपिंग पर नियंत्रण]
पैसा हाथ में आते ही यह जरूरी नहीं कि आप शॅापिंग पर निकल पड़े। इससे बेहतर होगा कि आप पहले आवश्यक सामान की लिस्ट बनाएं और उन्हे ही खरीदें।
[6. घर पर सौंदर्य की देखरेख]
आमतौर पर समय या श्रम को बचाने के लिए बाल धोने तक के लिए आप पार्लर चल देती है। यदि छोटे-मोटे काम घर पर ही कर लें तो आप बहुत सा पैसा बचा पाएंगी।
[7. सस्ता विकल्प देखें]
बहुत दिखावे वाले अत्यंत महंगे रेस्तरां में डिनर करने से जहां तक हो सके बचें। जरूरी नहीं कि महंगे होटलों व रेस्तरां में ही खाना अच्छा होता है, कई छोटे रेस्तरां भी सफाई व क्वालिटी का ध्यान रखते है।
[8. रिंगटोन लोड न करे]
बहुत से लोग मोबाइल हाथों में होने पर अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाते। उनके हाथ लगातार सक्रिय रहते है और इसीकारण वे अक्सर जाने-अनजाने नई से नई रिंगटोन लोडकर अपना बिल बढ़ाते रहते है।
[9. फिल्म देखनी हो तो]
यदि फिल्म देखनी हो, तो सीडी या डीवीडी लाकर घर पर फिल्म देखें। आज यदि दो लोग भी थियेटर पर फिल्म देखने जाते है, तो चार-पांच सौ रुपए खर्च हो जाते हैं। आप चाहें, तो किसी वीडियो लाइब्रेरी से सीडी लाकर भी फिल्म देख सकती हैं।
[10. यात्रा में बचत]
जब भी वीकएंड या किसी यात्रा पर जाना हो, तो कॉमिक या नॉवल घर से ले जाएं। लंबी यात्रा पर रास्ते में महंगी किताब खरीदने से बचेंगे और अपना पैसा बचा पाएंगे।
याद रखिए बूंद-बूंद से सागर बनता है। आप भी अपने सागर को बृहद बनाने की तरफ प्रयास कर सकती है।
पांच सौ रुपये
तीर्थपुरी में चार दिन रहने के बाद वापसी में प्लेटफार्म पर बैठा मैं ट्रेन का इंतजार कर रहा था कि सामने आठ दस लोगों के एक परिवार पर नजर पड़ी।
परिवार का मुखिया मुट्ठी में कुछ रुपये दबाये पंडित जी से विनती कर रहा था, ''पंडित जी आपने हमारे पूरे परिवार को दो दिन काफी अच्छी तरह से सारे मंदिरों के दर्शन कराये, पूजा अर्चना भी कराई। ये हमारी तरफ से जो बन पड़ा उसे दक्षिणा के रूप में स्वीकार कीजिये।'' पंडित जी ने जानना चाहा, ''कितने है?''। ''देखिये महाराज जितनी हमारी श्रद्धा है उतना दे रहे है। कृपया स्वीकार करे।'' उन्होंने घाटे की आशंका से अपने मन की बात खोल ही दी, ''देखिये यजमान मैं पूरे दो दिन आपके साथ रहा। आपके पूरे परिवार को अच्छी तरह से दर्शन कराये आपको कम से कम पांच सौ रुपये तो देने ही पड़ेगे।'' ''पंडित जी मैंने अपने मन में बरसों से जो सोचा हुआ था उसे पूरा कर लेने दीजिये। वैसे ये तो अपनी अपनी श्रद्धा की बात होती है हमारी इतनी श्रद्धा है इसमें ना नहीं कीजिये!'' यजमान ने एक बार पुन: विनती की। पर पंडित जी नहीं माने, ''देखिये यजमान मैं तो पांच सौ रुपये ही लूंगा। आपके सोचने से थोड़े ही कुछ होता है।
कुछ मैंने भी तो अपने मन में सोचा हुआ है।'' यजमान ने थोड़ी देर सोचा और अंतिम बार पंडित जी से पूछा, ''तो आपको ये रुपये नहीं चाहिये?'' - ''नहीं यजमान, मैं आपको पहले ही बता चुका हूं, मुझे तो पांच सौ रुपये ही चाहिये।''
यजमान ने मुट्ठी खोली उसमें पांच पांच सौ के चार नोट थे। उसमें से उन्होंने एक नोट पंडित जी को दिया और बाकी के तीन नोट पास खड़े भिखारी को दे दिये।
परिवार का मुखिया मुट्ठी में कुछ रुपये दबाये पंडित जी से विनती कर रहा था, ''पंडित जी आपने हमारे पूरे परिवार को दो दिन काफी अच्छी तरह से सारे मंदिरों के दर्शन कराये, पूजा अर्चना भी कराई। ये हमारी तरफ से जो बन पड़ा उसे दक्षिणा के रूप में स्वीकार कीजिये।'' पंडित जी ने जानना चाहा, ''कितने है?''। ''देखिये महाराज जितनी हमारी श्रद्धा है उतना दे रहे है। कृपया स्वीकार करे।'' उन्होंने घाटे की आशंका से अपने मन की बात खोल ही दी, ''देखिये यजमान मैं पूरे दो दिन आपके साथ रहा। आपके पूरे परिवार को अच्छी तरह से दर्शन कराये आपको कम से कम पांच सौ रुपये तो देने ही पड़ेगे।'' ''पंडित जी मैंने अपने मन में बरसों से जो सोचा हुआ था उसे पूरा कर लेने दीजिये। वैसे ये तो अपनी अपनी श्रद्धा की बात होती है हमारी इतनी श्रद्धा है इसमें ना नहीं कीजिये!'' यजमान ने एक बार पुन: विनती की। पर पंडित जी नहीं माने, ''देखिये यजमान मैं तो पांच सौ रुपये ही लूंगा। आपके सोचने से थोड़े ही कुछ होता है।
कुछ मैंने भी तो अपने मन में सोचा हुआ है।'' यजमान ने थोड़ी देर सोचा और अंतिम बार पंडित जी से पूछा, ''तो आपको ये रुपये नहीं चाहिये?'' - ''नहीं यजमान, मैं आपको पहले ही बता चुका हूं, मुझे तो पांच सौ रुपये ही चाहिये।''
यजमान ने मुट्ठी खोली उसमें पांच पांच सौ के चार नोट थे। उसमें से उन्होंने एक नोट पंडित जी को दिया और बाकी के तीन नोट पास खड़े भिखारी को दे दिये।
Friday, May 21, 2010
पत्रकार
एक व्यक्ति पशुओं के डॉक्टर के पास पहुंचा और कहा कि तबियत ठीक नहीं लग रही है, दिखाना है। डॉक्टर ने कहा कि कृपया मेरे सामने वाले क्लीनिक में जाएं, मैं तो जानवरों का डॉक्टर हूं। वहां देखिए, लिखा हुआ है।
रोगी– नहीं डॉक्टर साब मुझे आप ही को दिखाना है।
डॉक्टर– अरे यार, मैं पशुओं का डॉक्टर हूं। मनुष्यों का इलाज नहीं करता।
रोगी– डॉक्टर साब मैं जानता हूं और इसीलिए आपके पास आया हूं।
इस पर डॉक्टर साब चौंक गए। जानते हो? फिर मेरे पास क्यों आए।
रोगी- मेरी तकलीफ सुनेंगे तो जान जाएंगे।
डॉक्टर- अच्छा बताओ।
रोगी– सारी रात काम के बोझ से दबा रहता हूं।
सोता हूं तो कुत्ते की तरह सोता हूं।
चौबीसों घंटे चौकस रहता हूं।
सुबह उठकर घोड़े की तरह भागता हूं।
रफ्तार मेरी हिरण जैसी होती है।
गधे की तरह सारे दिन काम करता हूं।
मैं बिना छुट्टी की परवाह किए पूरे साल बैल की तरह लगा रहता हूं।
फिर भी बॉस को देखकर कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगता हूं।
अगर कभी, समय मिला तो अपने बच्चों के साथ बंदर की तरह खेलता हूं।
बीवी के सामने खरगोश की तरह डरपोक रहता हूं।
डॉक्टर ने पूछा – पत्रकार हो क्या?
रोगी- जी
डॉक्टर- इतनी लंबी कहानी क्या बता रहे थे। पहले ही बता देते। वाकई, तुम्हारा इलाज मुझसे बेहतर कोई नहीं कर सकता। इधर आओ। मुंह खोलो.. आ करो... जीभ दिखाओ....
रोगी– नहीं डॉक्टर साब मुझे आप ही को दिखाना है।
डॉक्टर– अरे यार, मैं पशुओं का डॉक्टर हूं। मनुष्यों का इलाज नहीं करता।
रोगी– डॉक्टर साब मैं जानता हूं और इसीलिए आपके पास आया हूं।
इस पर डॉक्टर साब चौंक गए। जानते हो? फिर मेरे पास क्यों आए।
रोगी- मेरी तकलीफ सुनेंगे तो जान जाएंगे।
डॉक्टर- अच्छा बताओ।
रोगी– सारी रात काम के बोझ से दबा रहता हूं।
सोता हूं तो कुत्ते की तरह सोता हूं।
चौबीसों घंटे चौकस रहता हूं।
सुबह उठकर घोड़े की तरह भागता हूं।
रफ्तार मेरी हिरण जैसी होती है।
गधे की तरह सारे दिन काम करता हूं।
मैं बिना छुट्टी की परवाह किए पूरे साल बैल की तरह लगा रहता हूं।
फिर भी बॉस को देखकर कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगता हूं।
अगर कभी, समय मिला तो अपने बच्चों के साथ बंदर की तरह खेलता हूं।
बीवी के सामने खरगोश की तरह डरपोक रहता हूं।
डॉक्टर ने पूछा – पत्रकार हो क्या?
रोगी- जी
डॉक्टर- इतनी लंबी कहानी क्या बता रहे थे। पहले ही बता देते। वाकई, तुम्हारा इलाज मुझसे बेहतर कोई नहीं कर सकता। इधर आओ। मुंह खोलो.. आ करो... जीभ दिखाओ....
Saturday, May 15, 2010
इतिहास के पन्नों में दफन होगा दिल्ली का तांगा
राजधानी में मुगलकाल से दौड़ने वाले तांगे को इतिहास बनाने का एमसीडी का फरमान, दिल्ली की तहजीब के साथ खिलवाड़ है। दिल्ली के इतिहास व तहजीब को भले ही मोहम्मद हारुन विस्तार ने नहीं जानते हैं, मगर उनके पुरखों ने तांगा चलाया था और वह भी तांगा चलाते वाले हैं। इनके परिवार का गुजर बसर इसी से चल रही है। दिल्ली में तांगे की सवारी पर प्रतिबंध लगाने संबंधी आदेश को तुगलकी फरमान बताते हैं। मो. हारुन जैसे सैकड़ों तांगे वाले हैं जिनके रातों की नींद आजीविका छिन जाने के डर से उड़ गई है। पुरानी दिल्ली और यमुनापार के कुछ इलाकों में चलने वाले तांगों के पहिए 31 मई से थमने संबंधी ऐलान से तांगेवालों में नाराजगी है। वे एमसीडी द्वारा वैकल्पिक रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाने को छलावा करार दे रहे हैं। तुर्कमान गेट स्थित तांगों वालों के डेरे में खानदानी तांगा चालक मो. आजाद ने बताया कि उसके पास एमसीडी की तरफ से लिखित आदेश नहीं आया है, लेकिन तांगे व घोड़ों को दिल्ली के बार्डर पार बेचने के लिए अधिकारी दबाव बनाए रहे हैं। दिल्ली में कुल 232 लाइसेंस प्राप्त तांगे वाले हैं। इनमें से 130 तांगेवालों को यमुनापार शास्त्री पार्क में तहबाजारी के लिए लाइसेंस दिया गया है। राष्ट्रमंडल खेल के दौरान यातायात में तांगा सड़कों पर बाधक न बने इसलिए गत वर्ष 19 नवंबर को एमसीडी की स्थायी समिति ने तांगों पर रोक लगाने का निर्णय लिया था। इससे जुड़े लोगों के सामने रोजगार का संकट न खड़ा हो इसके लिए एमसीडी कमिश्नर केएस मेहरा ने सभी तांगा चालकों को नि:शुल्क तहबाजारी के तहत खोखे देने का ऐलान किया था। इसके अलावा कोई तांगा चालक सीएनजी चालित ऑटो खरीदने में इच्छुक है तो इसके लिए प्रति लाइसेंस 40 से 53 हजार रुपये बतौर अनुदान देने की घोषणा की थी। उन्होंने बताया कि तांगा यूनियनों से कई महीनों बातचीत के बाद ही यह निर्णय लिया गया। तांगेवाले तहबाजारी पर काम करने के लिए तैयार नहीं है। उनका कहना है कि तांगों से सिर्फ तांगे वाले के परिवार का गुजारा नहीं होता, बल्कि इसके साथ बहुत से कामगार तथा मजदूर जुड़े हुए हैं। एक तांगे से प्रतिदिन चार सौ से पांच सौ रुपये की आमदनी होती है।
Sunday, May 9, 2010
आप भी कर सकेंगे तख्त-ए-ताऊस का दीदार
क्या आपने उस तख्त-ए-ताऊस को देखा है, जिसे नादिरशाह लूट ले गया था? क्या आप जानना चाहेंगे कि तीन सौ साल पहले दिल्ली का नक्शा कैसा था? तीस सौ साल पहले दिल्ली में परिवहन व्यवस्था कैसी थी और क्या थे पेयजल और मनोरंजन के साधन? दो सौ साल पहले कैसी दिखती थी कुतुबमीनार और डेढ़ सौ साल पहले कैसा था जामा मस्जिद का इलाका?
इन सभी सवालों का जवाब पाने के लिए आपको राष्ट्रमंडल खेलों तक इंतजार करना पड़ेगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं राष्ट्रमंडल खेलों की। दरअसल खेलों के दौरान दिल्ली में एक ऐसी प्रदर्शनी लगाई जाएगी, जिसमें सत्रहवीं शताब्दी के दौरान बनी कलाकृतियां प्रदर्शित की जाएंगी। इस प्रदर्शनी का आयोजन दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन द्वारा किया जाएगा। खास बात यह है कि प्रदर्शनी की सफलता के लिए 14 कलाकृतियां लंदन के संग्रहालयों से मंगाई जाएंगी।
दिल्ली के इतिहास से जुड़ीं ये कलाकृतियां लंदन के विक्टोरिया और अल्वर्ड संग्रहालय में रखी हुई हैं। देश छोड़ने के समय 1947 में अंग्रेज शासक इन्हें साथ ले गए थे। इनमें सबसे महत्व असली कलाकृति तख्त-ए-ताऊस की है, जिसकी कीमत उस समय 72 करोड़ लगाई गई थी। इसमें बेशकीमती कोहिनूर हीरा जड़ा था। शाहजहां से लेकर औरंगजेब तक मुगल शासकों ने इसी पर बैठकर शासन किया था। तख्त-ए-ताऊस को लूटकर नादिरशाह ईरान ले गया था, बाद में यह लंदन में पहुंचा।
लंदन से आने वाली कलाकृतियों में 1762 के चांदनी चौक, 1852 की जामा मस्जिद, लालकिला स्थित 1923 की मोती मस्जिद, पुराना किला, 1944 के लालकिला, दो सौ साल पहले के कुतुब मीनार के चित्र शामिल हैं। प्रदर्शनी कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने से एक सप्ताह पहले से शुरू होगी, जो खेलों के समापन के एक सप्ताह बाद तक चलेगी। अधिक से अधिक पर्यटक इस प्रदर्शनी को देख सकें इस उद्देश्य से इसे तीन स्थानों पर लगाया जाएगा। जिसमें लालकिला, दिल्ली विश्वविद्यालय व इंडिया हैबिटेट सेंटर शामिल हैं।
जागो पुलिस वालो, यह समय है जागने का
अभी भी समय है पुलिसवालों को नींद से जाग जाना चाहिए। इस कठोर टिप्पणी के साथ दिल्ली की एक निचली अदालत ने बच्चे के अपहरण और फिरौती के मामले में पुलिस के जांच के तरीके पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि ऐसे गंभीर मामलों की जांच डीसीपी स्तर के अधिकारी के मार्गदर्शन में की जानी चाहिए। जिससे आपराधिक मामलों में इंसाफ हो सके। अदालत ने अपने फैसले की एक प्रति उत्तर पूर्वी जिला के डीसीपी को भी भिजवाई है।
यह टिप्पणी कड़कड़डूमा कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निशा सक्सेना ने अपहरण व फिरौती के एक मुकदमे में पांच आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी करते हुए की। अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले को हलके में लेते हुए लापरवाही से जांच की। केस के तथ्यों को देखने से लगता है कि पुलिस जांच रिपोर्ट पूरी तरह से गलत, तथ्यहीन और लापरवाह है। पुलिस की इस ढिलाई से आरोपियों का अपराध साबित नहीं किया जा सका। ऐसी लापरवाही की उम्मीद पुलिस से नहीं की जा सकती।
पेश मामले में खजूरी खास थाने में 2 मार्च 2007 को सर्वेश ने अपने ढाई साल के बेटे हिमांशु की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया था। सर्वेश का बेटा घर के बाहर खेलते हुए गायब हो गया था। बाद में सर्वेश को 20 मार्च को फिरौती का एक पत्र मिला, जिसमें उसके बेटे को छोड़ने की एवज में 30 लाख रुपये मांगे गए थे। सर्वेश ने इसकी सूचना पुलिस को दी। अपहर्ताओं ने 1, 3 और 5 अप्रैल को सर्वेश के मोबाइल पर भी फोन किया। 7 अप्रैल को इस मामले की जांच सबइंस्पेक्टर सतेंद्र तोमर को सौंपी गई। पुलिस ने 17 अप्रैल को अलीगंज के देहलिया पूठ गांव में अमर सिंह के घर पर छापा मार कर वहां से दीपू, राकेश, राजकिशोर, महेश और जितेंद्र को गिरफ्तार किया। पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से हिमांशु को भी आजाद कराया। अदालत में सुनवाई के दौरान पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कुल आठ गवाह पेश किए।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निशा सक्सेना ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद पुलिस द्वारा मामले के संबंध में आरोपियों के खिलाफ पेश किए गए सबूतों को नाकाफी पाया।
यह टिप्पणी कड़कड़डूमा कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निशा सक्सेना ने अपहरण व फिरौती के एक मुकदमे में पांच आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी करते हुए की। अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले को हलके में लेते हुए लापरवाही से जांच की। केस के तथ्यों को देखने से लगता है कि पुलिस जांच रिपोर्ट पूरी तरह से गलत, तथ्यहीन और लापरवाह है। पुलिस की इस ढिलाई से आरोपियों का अपराध साबित नहीं किया जा सका। ऐसी लापरवाही की उम्मीद पुलिस से नहीं की जा सकती।
पेश मामले में खजूरी खास थाने में 2 मार्च 2007 को सर्वेश ने अपने ढाई साल के बेटे हिमांशु की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया था। सर्वेश का बेटा घर के बाहर खेलते हुए गायब हो गया था। बाद में सर्वेश को 20 मार्च को फिरौती का एक पत्र मिला, जिसमें उसके बेटे को छोड़ने की एवज में 30 लाख रुपये मांगे गए थे। सर्वेश ने इसकी सूचना पुलिस को दी। अपहर्ताओं ने 1, 3 और 5 अप्रैल को सर्वेश के मोबाइल पर भी फोन किया। 7 अप्रैल को इस मामले की जांच सबइंस्पेक्टर सतेंद्र तोमर को सौंपी गई। पुलिस ने 17 अप्रैल को अलीगंज के देहलिया पूठ गांव में अमर सिंह के घर पर छापा मार कर वहां से दीपू, राकेश, राजकिशोर, महेश और जितेंद्र को गिरफ्तार किया। पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से हिमांशु को भी आजाद कराया। अदालत में सुनवाई के दौरान पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कुल आठ गवाह पेश किए।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निशा सक्सेना ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद पुलिस द्वारा मामले के संबंध में आरोपियों के खिलाफ पेश किए गए सबूतों को नाकाफी पाया।
Saturday, May 8, 2010
लव के पीछे है केमिकल लोचा
आखिर 'लव' में ऐसा क्या है जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी मिस्ट्री माना गया है। अपने प्रेमी के लिए ललक ऐसी चीज है, जिसने वैज्ञानिकों को भी लम्बे वक्त तक हैरान किया है। प्यार करने वालों के बीच इस पागलपन का कारण जानने के लिए जाने कितनी खोजें हुई। अगर उन खोजों पर यकीन करें तो दो प्रेमियों की इमोशंस और उनके चेंज होने के पीछे जो असली कारण है, वह है शरीर में होने वाला केमिकल लोचा।
वैज्ञानिकों के अनुसार प्यार की अलग-अलग स्टेजेस जैसे इन्फैचुएशन, कडलिंग, अट्रैक्शन यहां तक कि बिट्रेयल के पीछे भी काम करते हैं कुछ खास केमिकल्स।
वैज्ञानिक मानते हैं कि आकर्षण असल में इन न्यूरोकेमिकल्स के वर्चुअल एक्सप्लोजन जैसा है। जिसके बाद आपको फील गुड होने लगता है। पीईए, एक केमिकल है जो नर्व सेल्स के बीच इन्फॉर्मेशन का फ्लो बढ़ा देता है। इस केमिस्ट्री में डोपामाइन और नोरिफिनेराइन नामक दो केमिकल्स भी बड़ा इंट्रेस्टिंग काम करते हैं। डोपामाइन हमें फील गुड का अहसास कराता है और नोरिफिनेराइन एड्रिनैलिन का प्रोडक्शन बढ़ा देता है। किसी को देखकर बढ़ने वाली हार्ट बीट इन कैमिकल्स की ही देन है, जिसे प्रेमी कुछ कुछ होना समझ बैठते हैं। ये तीनों कैमिकल्स कम्बाइन होकर काम करते हैं। इन्फैचुएशन जिसे इन जनरल लोग आपकी 'केमिस्ट्री' कहते हैं। यही कारण है कि नए प्रेमी खुद को हवा में उड़ता हुआ, बेहद ऊर्जावान सा फील करते हैं।
किसी के साथ कडल अप करने का मन बस यूं ही नहीं होता। इसके पीछे भी एक केमिकल है जनाब! ये है ऑक्सिटोसिन, जिसे कडलिंग केमिकल भी कहा गया है। वैसे तो ऑक्सिटोसिन को मदरहुड से भी संबंध किया जाता है लेकिन ये भी माना जाता है कि ये महिला और पुरूष दोनों को ज्यादा कूल और दूसरों की फीलिंग्स के लिए सेंसिटिव बनाता है। सेक्सुअल अराउजल में भी इसका खास रोल है। ऑक्सिटोसिन प्रोडक्शन ट्रिगर करने के पीछे इमोशनल रीजंस भी हो सकते हैं और फिजिकल भी। यानी अपने लवर की फोटो देखने, उसके बारे में सोचने से लेकर उसकी आवाज सुनने, उसके किसी खास अपीयरेंस तक कुछ भी आपकी बॉडी में ऑक्सिटोसिन का प्रोडक्शन बढ़ा सकता है। अगर प्रेमी फिजिकली प्रेजेंट हैं तो यही हार्मोन एक-दूसरे को गले लगाने और कडल करने के लिए उकसाता है।
इन्फैचुएशन कम होते ही केमिकल्स का एक नया ग्रुप टेकओवर कर लेता है। इसे क्रिएट करते हैं एन्डॉर्फिन्स। ये केमिकल्स पीईए जैसे एक्साइटिंग नहीं होते लेकिन ज्यादा एडिक्टिव और कूल करने वाले होते हैं। यही कारण है कि इन्फैचुएशन के बाद प्यार की अगली स्टेज यानी अटैचमेंट में इंटिमेसी के साथ-साथ ट्रस्ट, वॉर्म्थ और साथ वक्त बिताने जैसी इमोशंस फील की जाती हैं। जितना ज्यादा लोग इन केमिकल्स के आदी हो जाएं वो उतना ही इनसे दूर नहीं रह सकते। यही कारण है कि लम्बे चलने वाले लव अफेयर्स या कोई खास रिश्ता टूटना आप बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसके पीछे रीजन है इन केमिकल्स का लत लगना। अपने पार्टनर के दूर जाने पर उसे मिस करने के पीछे भी यही एंडॉर्फिन्स होते हैं।
प्रेमी के दूर जाने पर ये केमिकल्स बॉडी में कम होने लगते हैं और इनके आदी होने की वजह से आप अपने प्रेमी, या विज्ञान की भाषा में कहें तो इन हारमोन्स की कमी महसूस करने लगते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार प्यार की अलग-अलग स्टेजेस जैसे इन्फैचुएशन, कडलिंग, अट्रैक्शन यहां तक कि बिट्रेयल के पीछे भी काम करते हैं कुछ खास केमिकल्स।
वैज्ञानिक मानते हैं कि आकर्षण असल में इन न्यूरोकेमिकल्स के वर्चुअल एक्सप्लोजन जैसा है। जिसके बाद आपको फील गुड होने लगता है। पीईए, एक केमिकल है जो नर्व सेल्स के बीच इन्फॉर्मेशन का फ्लो बढ़ा देता है। इस केमिस्ट्री में डोपामाइन और नोरिफिनेराइन नामक दो केमिकल्स भी बड़ा इंट्रेस्टिंग काम करते हैं। डोपामाइन हमें फील गुड का अहसास कराता है और नोरिफिनेराइन एड्रिनैलिन का प्रोडक्शन बढ़ा देता है। किसी को देखकर बढ़ने वाली हार्ट बीट इन कैमिकल्स की ही देन है, जिसे प्रेमी कुछ कुछ होना समझ बैठते हैं। ये तीनों कैमिकल्स कम्बाइन होकर काम करते हैं। इन्फैचुएशन जिसे इन जनरल लोग आपकी 'केमिस्ट्री' कहते हैं। यही कारण है कि नए प्रेमी खुद को हवा में उड़ता हुआ, बेहद ऊर्जावान सा फील करते हैं।
किसी के साथ कडल अप करने का मन बस यूं ही नहीं होता। इसके पीछे भी एक केमिकल है जनाब! ये है ऑक्सिटोसिन, जिसे कडलिंग केमिकल भी कहा गया है। वैसे तो ऑक्सिटोसिन को मदरहुड से भी संबंध किया जाता है लेकिन ये भी माना जाता है कि ये महिला और पुरूष दोनों को ज्यादा कूल और दूसरों की फीलिंग्स के लिए सेंसिटिव बनाता है। सेक्सुअल अराउजल में भी इसका खास रोल है। ऑक्सिटोसिन प्रोडक्शन ट्रिगर करने के पीछे इमोशनल रीजंस भी हो सकते हैं और फिजिकल भी। यानी अपने लवर की फोटो देखने, उसके बारे में सोचने से लेकर उसकी आवाज सुनने, उसके किसी खास अपीयरेंस तक कुछ भी आपकी बॉडी में ऑक्सिटोसिन का प्रोडक्शन बढ़ा सकता है। अगर प्रेमी फिजिकली प्रेजेंट हैं तो यही हार्मोन एक-दूसरे को गले लगाने और कडल करने के लिए उकसाता है।
इन्फैचुएशन कम होते ही केमिकल्स का एक नया ग्रुप टेकओवर कर लेता है। इसे क्रिएट करते हैं एन्डॉर्फिन्स। ये केमिकल्स पीईए जैसे एक्साइटिंग नहीं होते लेकिन ज्यादा एडिक्टिव और कूल करने वाले होते हैं। यही कारण है कि इन्फैचुएशन के बाद प्यार की अगली स्टेज यानी अटैचमेंट में इंटिमेसी के साथ-साथ ट्रस्ट, वॉर्म्थ और साथ वक्त बिताने जैसी इमोशंस फील की जाती हैं। जितना ज्यादा लोग इन केमिकल्स के आदी हो जाएं वो उतना ही इनसे दूर नहीं रह सकते। यही कारण है कि लम्बे चलने वाले लव अफेयर्स या कोई खास रिश्ता टूटना आप बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसके पीछे रीजन है इन केमिकल्स का लत लगना। अपने पार्टनर के दूर जाने पर उसे मिस करने के पीछे भी यही एंडॉर्फिन्स होते हैं।
प्रेमी के दूर जाने पर ये केमिकल्स बॉडी में कम होने लगते हैं और इनके आदी होने की वजह से आप अपने प्रेमी, या विज्ञान की भाषा में कहें तो इन हारमोन्स की कमी महसूस करने लगते हैं।
संजय झील की कहानी, इसमें नहीं आया पानी
दिल्ली पर्यटन विभाग संजय झील में पानी की व्यवस्था तो कर नहीं पाया है, अलबत्ता विभाग ने पांच नई बोट जरूर खरीद ली हैं संजय झील में चलाने के लिए। दिल्ली पर्यटन विभाग संजय झील को सजाने की तो सोच रहा है, मगर विभाग की ओर से सूखी हुई इस झील में फिर से पानी लाने के कोई प्रबंध नहीं किए गए हैं। ऐसे में जब झील ही नहीं रही तो सूखी झील में नई बोट उतारना किसी तुगलकी योजना से कम नहीं है।
उल्लेखनीय है कि संजय झील एक प्राकृतिक झील है। पिछले कई वर्षो से इसके अंदर की गाद न निकाले जाने और इसमें अतिरिक्त पानी की आपूर्ति न किए जाने से इस झील का 90 प्रतिशत हिस्सा पूरी तरह से सूख चुका है। शेष बचे 10 प्रतिशत हिस्से में भी मात्र एक फुट की गहराई तक ही पानी बचा है। जिसमें गहरी गाद, काई और घास है। इसमें न तो नौकायन हो सकता है और न ही प्रवासी पक्षी यहां आते हैं।
ऐसे में दिल्ली पर्यटन विभाग ने झील की इस बदहाल स्थिति को दरकिनार करते हुए इसमें अतिरिक्त पानी की आपूर्ति कराने के बजाए पांच नई पैडल मारकर चलाने वाली बोट यहां के लिए खरीदी है। इन बोट को अत्याधुनिक एवं शिकारा नाव जैसा लुक प्रदान करते हुए इन पर छतें भी लगवाई गई हैं। इन महंगी बोट को संजय झील के एक फुट बचे पानी में जब उतारा गया तो ये झील में फंस गई और दो फुट दूरी तक भी नहीं चल पाई। जिससे दिल्ली पर्यटन विभाग के अधिकारियों को अपनी कमी का अहसास हो गया। मामले को लीपा-पोती करने का प्रयास करते हुए डीडीए अधिकारियों को संजय झील में पानी का प्रबंध करने को भी कहा गया है।
इस बारे में दिल्ली पर्यटन विभाग के मुख्य प्रबंधक केबी शर्मा से जब बात की गई तो वे समस्या के प्रति गंभीर नजर नहीं आए। उनका कहना था कि संजय झील के जिस क्षेत्र में पानी है, उस क्षेत्र में बोटिंग होती है। वहां पर उन्हें पानी की कोई कमी दिखाई नहीं देती। उन्होंने कहा कि पानी भरपूर मात्रा में है, जिसके चलते वहां पर उन्होंने नई बोट पानी में उतारी है। जबकि हकीकत यह है कि उस हिस्से में भी बोट दो फुट नहीं चल पा रहीं। हालांकि आगे उन्होंने कहा कि संजय झील में पानी का प्रबंध करने का जिम्मा डीडीए का है, उनके विभाग का काम केवल वहां पर पर्यटन को बढ़ावा देने का है। इस तरह उन्होंने गेंद डीडीए के पाले में डाल दी
उल्लेखनीय है कि संजय झील एक प्राकृतिक झील है। पिछले कई वर्षो से इसके अंदर की गाद न निकाले जाने और इसमें अतिरिक्त पानी की आपूर्ति न किए जाने से इस झील का 90 प्रतिशत हिस्सा पूरी तरह से सूख चुका है। शेष बचे 10 प्रतिशत हिस्से में भी मात्र एक फुट की गहराई तक ही पानी बचा है। जिसमें गहरी गाद, काई और घास है। इसमें न तो नौकायन हो सकता है और न ही प्रवासी पक्षी यहां आते हैं।
ऐसे में दिल्ली पर्यटन विभाग ने झील की इस बदहाल स्थिति को दरकिनार करते हुए इसमें अतिरिक्त पानी की आपूर्ति कराने के बजाए पांच नई पैडल मारकर चलाने वाली बोट यहां के लिए खरीदी है। इन बोट को अत्याधुनिक एवं शिकारा नाव जैसा लुक प्रदान करते हुए इन पर छतें भी लगवाई गई हैं। इन महंगी बोट को संजय झील के एक फुट बचे पानी में जब उतारा गया तो ये झील में फंस गई और दो फुट दूरी तक भी नहीं चल पाई। जिससे दिल्ली पर्यटन विभाग के अधिकारियों को अपनी कमी का अहसास हो गया। मामले को लीपा-पोती करने का प्रयास करते हुए डीडीए अधिकारियों को संजय झील में पानी का प्रबंध करने को भी कहा गया है।
इस बारे में दिल्ली पर्यटन विभाग के मुख्य प्रबंधक केबी शर्मा से जब बात की गई तो वे समस्या के प्रति गंभीर नजर नहीं आए। उनका कहना था कि संजय झील के जिस क्षेत्र में पानी है, उस क्षेत्र में बोटिंग होती है। वहां पर उन्हें पानी की कोई कमी दिखाई नहीं देती। उन्होंने कहा कि पानी भरपूर मात्रा में है, जिसके चलते वहां पर उन्होंने नई बोट पानी में उतारी है। जबकि हकीकत यह है कि उस हिस्से में भी बोट दो फुट नहीं चल पा रहीं। हालांकि आगे उन्होंने कहा कि संजय झील में पानी का प्रबंध करने का जिम्मा डीडीए का है, उनके विभाग का काम केवल वहां पर पर्यटन को बढ़ावा देने का है। इस तरह उन्होंने गेंद डीडीए के पाले में डाल दी
Friday, May 7, 2010
mast logon k mast hair style
takli auntie
mujse shadi karoge
mujko nahi mere balon ko dekho
main khoobsurat hu na bhai log
panja hair style
ballon ki topi
aage to moochh ugi nahi to piche hi uga ki
ujda chaman
my hand cut hair style
dragon cut
opps kuch baal katna bhul gaya naii
hellycoopter
ujda chaman ki bacchi hui kheti
bridge cut hair style
super main and bat man
or finally kukdu-ku hair sttyle
Saturday, February 27, 2010
ज़िन्दगी मनायेगी खुद अपनी होली
अबकी बारी कर कुछ ऐसा कमाल
छोड़ पिचकारी,रंग,अबीर, गुलाल
अपना ले खुशियाँ सब,छोड़ मलाल
तब निकलेंगी उम्मीदों की टोली
ज़िन्दगी मनायेगी खुद अपनी होली
फ़रियाद से पहले भर देगी झोली
छोड़ पिचकारी,रंग,अबीर, गुलाल
अपना ले खुशियाँ सब,छोड़ मलाल
तब निकलेंगी उम्मीदों की टोली
ज़िन्दगी मनायेगी खुद अपनी होली
फ़रियाद से पहले भर देगी झोली
Sunday, February 14, 2010
अरे भाई ! मर्डर कर लिया क्या ?
अरे भाई ! मर्डर कर लिया क्या ? ÙãUè´ भाई, अभी Ìæð ×ñ´ ÚUð ·ð¤â ·¤ÚU ÚUãUæ ãUê¢.......Ð ßæð ÇU·ñ¤Ìè ·¤æ क्या ãUé¥æ? ©Uâè ·¤æð ×ðÚUð Âæâ
भेज ÎæðÐ Øð â¢ßæÎ âéÙÙð ×ð´ भले ãUè Üæð»æð´ ·¤æð ¥ÅUÂÅUð Ü»ð, ×»ÚU Øð â¢ßæÎ राजधानी ·ð¤ ·ý¤æ§× çÚUÂæðÅUüÚUæð´ ·ð¤ ÁèßÙ ·¤æ अभिन्न ¥¢» ÕÙÌð Áæ ÚUãUð ãUñ´Ð ×ñ´ भी ©UÙ×ð´ âð ãUè °·¤ ãUê¢Ð ÚUæðÁ àææ× Â梿 ÕÁÌð ãUè Áñâð ãUè §¢ÅUÚUÙðÅU âð M¤ÕM¤ ãUæðÌæ ãUê¢ Ìæð ·é¤À §âè ÌÚUãU ·ð¤ â¢ßæÎ Áè-×ðÜ ¿ñÅU ·ð¤ ÁçÚUØð ÎêâÚUð çÚUÂæðÅUüÚUæð´ âð ãUæðÌð ãUñ´Ð ¥æÂâè ÌæÜ×ðÜ ·¤è Âýç·ý¤Øæ ·ð¤ ¿ÜÌð ãUÚU ·¤æð§ü ÎêâÚUð âð ç·¤âè Ù ç·¤âè अपराध ·¤è सम्पूर्ण ÁæÙ·¤æÚUè ÂæÙæ ¿æãUÌæ ãUñ ¥æñÚU §â ÌÚUãU ·ð¤ शब्द लिखकर U ¥ÂÙð साथियों को भेजता है Ð ¥æÁ ×ñ´ ¥æ Üæð»æð´ ·¤æð §â लेख के माध्यम âð ÕèÌð çÎÙæð´ ¥ÂÙð साथ हुए °·¤ çÎÜ¿S ãUæSØæSÂÎ ƒæÅUÙæ·ý¤× âð M¤ÕM¤ ·¤ÚUæÙæ ¿æãUÌæ ãUê¢Ð
ÕèÌð çÎÙæð´ ·¤è ãUè ÕæÌ ãUñ ç·¤ ×ñ´ ¥ÂÙð घरU ÂÚU ÜñÂÅUæò ×ð´ ·é¤À ·¤æ× ·¤ÚU ÚUãUæ था ç·¤ ¥¿æÙ·¤ ×ðÚUð Áè-×ðÜ ¿ñÅU ÂÚU °·¤ साथी Ùð ×ñâðÁ भेजा ¥æñÚU ÂêÀæ ç·¤ भाई ¥æÂÙð ×ÇUüÚU ·¤ÚU çÜØæ क्या? ×ñ´Ùð Ìæð §âð âãUÁ ãUè çÜØæ, ×»ÚU ×ðÚUð साथ ÕñÆð ×ðÚUð °·¤ çÚUàÌðÎæÚU ·ð¤ çÎ×æ» ×ð´ Øð àæŽÎ घनघना »°Ð ×ñ´Ùð ¥ÂÙð मित्र को सीधा सा जवाब भेजा ç·¤ ÙãUè´Ð §ââð ÂãUÜð ×ñ´ ¥ÂÙð ÙðÅU Èýð´¤ÇU ·¤æð Øð ÕÌæÌæ ç·¤ ×ñ´ ¥ß·¤æàæ ÂÚU ãUê¢, ×ãUæðÎØ Ùð ÎêâÚUæ ×ñâðÁ âÅUæ·¤ âð भेज मारा. .çÁâ×ð´ लिखा था ç·¤ ×ñ´Ùð ×ñ´Ùð ÚUð ·ð¤â ·¤ÚU çÜØæ ãUñ, ÌéãUð´ ·¤ÚUÙæ ãUñ Ìæð Îê¢Ð ×ñ´Ùð °·¤ Üæ§Ù ×ð´ जवाब çÎØæ ç·¤ ×ñ´ ¥ß·¤æàæ ÂÚU ãUê¢Ð §â·ð¤ ÕæÎ मित्र से ¿ðçÅU¢» ·¤æ çâÜçâÜæ Ìæð բΠãUé¥æ, ×»ÚU ØãU âÕ देख करU ×ðÚUð çÚUàÌðÎæÚU ç·¤âè »ÜÌȤãU×è ·¤æ çàæ·¤æÚU ãUæð »°Ð ×éÛæð â×ÛææÌð ãUé° ·¤ãUÙð Ü»ð ç·¤ देखो भाई ØãU ©U×ÚU ãUè ·é¤À °ðâè ãUñ, ç·¤ ·¤Î× ÕãU·¤ ÁæÌð ãUñ´Ð »ÜÌ ·¤æ× ·¤æ ¥¢Áæ× ÕãUéÌ ÕéÚUæ ãUæðÌæ ãUñÐ ×éÛæð ©UÙ·¤è ÕæÌð´ â×Ûæ ×ð´ ÙãUè´ ¥æ ÚUãUè थी , ç·¤ ßð ·¤ãUÙæ क्या चाहते ãUñ´Ð çÚUàÌðÎæÚU ×ãUæðÎØ ÌéÚU¢Ì ÕæðÜð खबरदार °ðâð ÎæðSÌæð´ âð ÎæðÕæÚUæ ·¤æð§ü वास्ता रखा Ìæð Æè·¤ Ù ãUæð»æ ¥æñÚU ×éÛæð ×ÁÕêÚUÙ ÌéãUæÚUð çÂÌæ ·¤æð ØãU ÕæÌ ÕÌæÙè ãUæð»èÐ ×éÛæð ÁËÎ ãUè ØãU âæÚUæ ×æÁÚUæ â×Ûæ ×ð´ ¥æ »Øæ ¥æñÚU ×ñ´ खूब ÂðÅU ·¤ÇU¸ ·¤ÚU ãU¢âæ ¥æñÚU ¥ÂÙð çÚUàÌðÎæÚU ·¤æð âæÚUè ÕæÌ â×Ûææ§ü Ìæð ßãU भी ¥ÂÙè Õðß·ê¤È¤è ÂÚU खूब ãU¢âæÐ §â घटनाक्रम âð °·¤ ÕæÌ ÁM¤ÚU â×Ûæ ×ð´ ¥æ »§ü ç·¤ ãU×æÚUè âãUÁ âè ÕæÌð´ भी ·¤§ü ÕæÚU ÎêâÚUæð´ ·¤æð ¥âãUÁ ·¤ÚU â·¤Ìè ãUñ´, §âçÜ° ¥ÂÙð घर âð ¥æçȤ⠷𤠷¤æ× ·¤æð ÎêÚU ãUè रखना चाहिए.
Saturday, February 13, 2010
mat puch muje tu kitni pyari hai
: ye mat puch muje tu kitni pyari hai,,
tu mere mann k aangan ki fulwari hai,
aag buje chulhe sa ho jaye mera mann,,
jab main dekhu k teri mayke jane ki tayari hai........
mat puch muje tu kitni pyari hai.......
Sunday, February 7, 2010
हिंदी ब्लोग्गर्स की बैठक दिल्ली में
आभासी दुनिया से बाहर निकल कर अब सोशल नेटवर्किंग साईटस और ब्लोग्गिंग के
माध्यम से आपस में संवाद करते लोग असलियत में भी आमने सामने मिल बैठने
लगे हैं । दिनांक ७ फ़रवरी २०१० को पूर्वी दिल्ली के जीजीएस रेस्त्रां में
हिंदी ब्लोग्गर्स की एक बैठक का आयोजन किया गया । इस बैठक में शामिल होने
के लिए जहां जर्मनी जैसे सुदूर देश से हिंदी भाषी व्यावसायी पहुंचे वहीं
हरियाणा, उत्तरप्रदेश और दिल्ली के ब्लोग्गर्स भी इकट्ठा हुए । लगभग
पैंतीस हिंदी भाषी ब्लोग्गर्स ने इस बैठक में शिरकत करते हुए, न सिर्फ़
आभासी दुनिया, विशेषकर ब्लोग्गिंग से जुडे अपने दिलचस्प अनुभव और किस्से
एक दूसरे के साथ बांटे बल्कि , हिंदी ब्लोग्गिंग से जुडे कई मुद्दों ,
समस्याओं , भविष्य की योजनाओं आदि पर भी विचार विमर्श किया ।
सुबह चार बजे से लेकर शाम के चार बजे तक चली इस ब्लोग्गर्स बैठक
में शामिल होने वाले ब्लोग्गर्स में जहां जर्मनी से आए व्यावसायी श्री
राजीव भाटिया जी, मीडिया से जुडे पत्रकारों में श्री खुशदीप सहगल जी,
विनीत उत्पल जी,विनीत कुमार जी, सुश्री प्रतिभा कुशवाहा जी ,मयंक सक्सेना
जी , शिक्षाविद एवं साहित्य से जुडे अविनाश वाचस्पति , कविता वाच्कनवी ,
मसीजीवी, एम वर्मा, सतीश सक्सेना, डा. टी एस दराल, श्री सरवत जमाल जी,
राजीव तनेजा एवं संजू तनेजा जी , मोईन शम्सी जी ,श्री पद्म सिंह, पं डी
के शर्मा वत्स , निशांत त्रिपाठी, मिथिलेश दूबे, विनोद कुमार पांडे,
तारकेशवर गिरि, आदि और बहुत से प्रमुख थे । ब्लोग बैठक के आयोजन में
संयोजक की भूमिका निभाने वाले अजय कुमार झा ने बताया कि भविष्य में हिंदी
ब्लोग्गर्स की बैठक के साथ साथ उनके लिए एक कार्यशाला आयोजित करने की भी
योजना है ।
आभासी दुनिया को अब एक शशक्त विचार संप्रेषण से लेकर , अभिवयक्ति
का एक महतव्पूर्ण मंच मानते हुए सभी ने ब्लोग लेखन को एक जिम्मेदारी और
चुनौती के रूप में स्वीकार किया । इस बैठक की सफ़लता को देखते हुए भविष्य
में राष्ट्रीय ब्लोग्गर्स सम्मेलन के आयोजन को लेकर सभी बहुत उत्साहित
दिखे ।
माध्यम से आपस में संवाद करते लोग असलियत में भी आमने सामने मिल बैठने
लगे हैं । दिनांक ७ फ़रवरी २०१० को पूर्वी दिल्ली के जीजीएस रेस्त्रां में
हिंदी ब्लोग्गर्स की एक बैठक का आयोजन किया गया । इस बैठक में शामिल होने
के लिए जहां जर्मनी जैसे सुदूर देश से हिंदी भाषी व्यावसायी पहुंचे वहीं
हरियाणा, उत्तरप्रदेश और दिल्ली के ब्लोग्गर्स भी इकट्ठा हुए । लगभग
पैंतीस हिंदी भाषी ब्लोग्गर्स ने इस बैठक में शिरकत करते हुए, न सिर्फ़
आभासी दुनिया, विशेषकर ब्लोग्गिंग से जुडे अपने दिलचस्प अनुभव और किस्से
एक दूसरे के साथ बांटे बल्कि , हिंदी ब्लोग्गिंग से जुडे कई मुद्दों ,
समस्याओं , भविष्य की योजनाओं आदि पर भी विचार विमर्श किया ।
सुबह चार बजे से लेकर शाम के चार बजे तक चली इस ब्लोग्गर्स बैठक
में शामिल होने वाले ब्लोग्गर्स में जहां जर्मनी से आए व्यावसायी श्री
राजीव भाटिया जी, मीडिया से जुडे पत्रकारों में श्री खुशदीप सहगल जी,
विनीत उत्पल जी,विनीत कुमार जी, सुश्री प्रतिभा कुशवाहा जी ,मयंक सक्सेना
जी , शिक्षाविद एवं साहित्य से जुडे अविनाश वाचस्पति , कविता वाच्कनवी ,
मसीजीवी, एम वर्मा, सतीश सक्सेना, डा. टी एस दराल, श्री सरवत जमाल जी,
राजीव तनेजा एवं संजू तनेजा जी , मोईन शम्सी जी ,श्री पद्म सिंह, पं डी
के शर्मा वत्स , निशांत त्रिपाठी, मिथिलेश दूबे, विनोद कुमार पांडे,
तारकेशवर गिरि, आदि और बहुत से प्रमुख थे । ब्लोग बैठक के आयोजन में
संयोजक की भूमिका निभाने वाले अजय कुमार झा ने बताया कि भविष्य में हिंदी
ब्लोग्गर्स की बैठक के साथ साथ उनके लिए एक कार्यशाला आयोजित करने की भी
योजना है ।
आभासी दुनिया को अब एक शशक्त विचार संप्रेषण से लेकर , अभिवयक्ति
का एक महतव्पूर्ण मंच मानते हुए सभी ने ब्लोग लेखन को एक जिम्मेदारी और
चुनौती के रूप में स्वीकार किया । इस बैठक की सफ़लता को देखते हुए भविष्य
में राष्ट्रीय ब्लोग्गर्स सम्मेलन के आयोजन को लेकर सभी बहुत उत्साहित
दिखे ।
Sunday, January 10, 2010
सरकार ने दबाए 25 हजार बच्चों के ढाई करोड़ रुपए!
बात सुनने में अजीब लगेगी, लेकिन सच है। एक-दो नहीं, बल्कि दिल्ली के 25000 से ज्यादा गरीब बच्चों का करीब ढाई करोड़ रुपया दिल्ली सरकार दबाए बैठी है। यह पैसा कमजोर आय वर्ग से ताल्लुक रखने वाले गरीब बच्चों को हर साल किताब-कापियां और यूनिफार्म खरीदने की मद में मिलता है, जो अभी तक नहीं मिला है। जनवरी चल रही है और शैक्षणिक सत्र पूरा होने में चंद माह शेष हैं। अब तक गरीब बच्चों को उनका हक मिल जाना चाहिए था, पर अधिकारियों को शायद यह ध्यान ही नहीं। हाईकोर्ट के आदेश पर वर्ष 05-06 में एनसीईआरटी के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई थी। उसमें अधिवक्ता अशोक अग्रवाल भी सदस्य थे। कमेटी से निजी स्कूलों में कमजोर आय वर्ग के बच्चों को प्रवेश और उन्हें मिलने वाली सहूलियतों के बारे में रिपोर्ट देने को कहा गया था। कमेटी ने सिफारिश की थी कि गरीब बच्चों को स्कूल की ओर से किताबें, यूनिफार्म और ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं मिलती है। ऐसे में ये खर्चे सरकार को उठाने चाहिए। हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने ईडब्ल्यूएस श्रेणी के बच्चों को किताबें और यूनिफार्म की खरीद का खर्च उठाने (रीइंबर्स) के लिए सरकार को निर्देश दिया था। तब सरकार ने जैसे-तैसे करीब एक करोड़ रुपये इस मद में लगाए। अधिवक्ता अशोक अग्रवाल के मुताबिक, इस वर्ष दिल्ली सरकार गरीब बच्चों की ओर से आंखें मूंदे बैठी है, जबकि आदेश अप्रैल, 07 से लागू हंै। दिल्ली के 394 निजी स्कूलों में नर्सरी से बारहवीं तक 15 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत पढ़ने वाले 25 हजार से ज्यादा बच्चों के अभिभावक अप्रैल में शैक्षणिक सत्र शुरू होने के साथ ही किताबें और यूनिफार्म खरीद चुके हैं, लेकिन अभी तक बच्चों को वापस लौटाई जाने वाली राशि निर्गत नहीं की गई है। सरकार बच्चों का ये पैसा दबाए बैठी है। पहले सरकार की ओर से 650 से लेकर 800 रुपये प्रति बच्चे के हिसाब से राशि वापस की गई थी। तब यूनिफार्म का सरकारी दाम 300 रुपया था, जो महंगाई के चलते बढ़कर पांच सौ रुपये हो चुका है। इसी प्रकार जियोमेट्री बॉक्स के पहले 30 रुपये मिलते थे। कायदे से हर बच्चे को एक हजार रुपया मिलना चाहिए। इस हिसाब से बच्चों का करीब ढाई करोड़ रुपया सरकार को देना है। अभी तक सरकार की ओर से कोई कोशिश शुरू नहीं हुई है। इसे देखते हुए बीते दिनों सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से शिक्षा सचिव को पत्र भेजा गया है। सुनवाई न होने पर अदालत से फरियाद करने की बात कही है।
कैंची से दोस्ती करेंगे आईटीआई के छात्र
आईटीआई के छात्र कई तरह के औजारों के साथ दोस्ती निभाते रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी दोस्ती ऐसे औजार के साथ होगी, जो उन्हें नाम, शोहरत और पैसा तीनों उपलब्ध करा सकेगा। तकनीकी निदेशालय राजधानी की सभी आईटीआई में हेयर ड्रेसिंग का कोर्स शुरू करने जा रहा है। उनको नामी-गिरामी हेयर स्टाइलिस्टों के यहां ट्रेनिंग भी उपलब्ध कराई जाएगी। अब आईटीआई के तकनीकी विशेषज्ञ ही नहीं निकलेंगे, बल्कि नामी गिरामी हेयर स्टाइलिस्ट भी तैयार किए जाएंगे। आजाद बारबर एसोसिएशन दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष डा. मोहम्मद इमरान सलमानी एवं यमुनापार अध्यक्ष इजहार सलमानी ने बताया कि राजधानी दिल्ली के कम पढ़े-लिखे युवकों को हेयर ड्रेसिंग की बेहतर ट्रेनिंग एवं सरकारी डिप्लोमा दिलाने के लिए उन्होंने दिल्ली सरकार के तकनीकी शिक्षा निदेशालय को हेयर ड्रेसिंग का डिप्लोमा कोर्स राजधानी के सभी आईटीआई में कराए जाने का सुझाव भेजा था। इस पर तकनीकी शिक्षा निदेशालय ने मंजूरी दे दी है। नए सत्र से नए कोर्स को शुरू करने की योजना बनाई है। तकनीकी शिक्षा निदेशालय के अस्सिटेंट डायरेक्टर जुवेल कुजुर के अनुसार निदेशालय हेयर ड्रेसिंग के डिप्लोमा कोर्स को फलेक्सिबल मॉडयूलर ट्रेनिंग स्कीम के तहत इस वर्ष के नए सत्र से शुरू करेगा। यह डिप्लोमा कोर्स छह माह का होगा। इसको करने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 8वीं कक्षा पास होना रखी गई है। निदेशालय ने इस नए कोर्स को शुरू करने के लिए पाठयक्रम सामग्री और स्लेबस भी तैयार करा लिया है। कोर्स के दौरान छात्रों को कटिंग, मसाज, एवं अन्य कार्यो की जानकारी और हेयर ड्रेसिंग में प्रयोग की जाने वाली सभी आधुनिक तकनीकों की जानकारी हेयर विशेषज्ञों एवं कुशल प्रशिक्षकों द्वारा दी जाएगी। तीन माह का किताबी ज्ञान और बाकी के लिए ट्रेनिंग सेशन रखा गया है। इसमें कोर्स करने वाले छात्रों को नामी-गिरामी हेयर ड्रेसरों एवं हेयर स्टाइलिस्टों के पास ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी। निदेशालय ने दिल्ली में 11 नामी-गिरामी हेयर सैलून को ट्रेनिंग सेंटर के रूप में अपने साथ जोड़ा है।
Saturday, January 2, 2010
"कब मनाएं नया साल"
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लेखक--------विनोद बंसल
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